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________________ प्रथम वर्ग खमा कर हमारे साथ विपुल पर्वत पर गये थे यावत् वे संथारा करके कालधर्म को प्राप्त हो गये हैं। ये उनके उपकरण (वस्त्र, पात्र) हैं। इसके बाद गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार पूछा ५–“एवं खलु देवाणुप्पियाणं अन्तेवासी जाली नाम अणगारे पगइभद्दए / से णं जाली अणगारे कालगए कहि गए, कहि उववणे ?" एवं खलु गोयमा ! ममं अन्तेवासी तहेव जहा खंदयस्स जाव [“अब्भगुण्णाए समाणे सयमेव पंच महत्वयाई प्रारहेता, तं चेव सव्वं अवसेसियं नेयव्वं, जाव जाली अणगारे"] कालगए उड्ढं चंदिम जाव [सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूई जोयणाई, बहूइं जोयणसयाई, बहूई जोयणसहस्साई, बहूई जोयणसयसहस्साई, बहूई जोयणकोडोओ, बहूई जोयणकोडाकोडीयो उड्ढे दूर उप्पइत्ता सोहम्मोसाण सणंकुमारमाहिदबंभलंतगमहासुक्कसहस्साराणयपाणयारणच्चुए तिन्नि य अट्ठारसुत्तरे गेवेज्जविमाणावाससए वोईवइत्ता] विजए महाविमाणे देवत्ताए उववण्णे / "जालिस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?" "गोयमा ! बत्तीसं सागरोपमाइं ठिई पण्णत्ता।" "से णं भंते ! तानो देव-लोयानो पाउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं कहि गच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ ?' "गोयमा ! महाविदेहे वासे सिझिहिइ।" निक्षेप "एवं खलु जंबू समणेणं जाव संपत्तणं अणतरोवाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्त / " गौतम स्वामी ने पूछा--"भन्ते ! प्रापका अन्तेवासी जालो अनगार, जो प्रकृति से भद्र था, वह अपना आयुष्य पूर्ण करके कहाँ गया है ? और कहाँ उत्पन्न हुआ है ?" भगवान ने उत्तर दिया--गौतम ! मेरा अन्तेवासी जाली अनगार, इत्यादि कथन स्कंदक के समान जानना यावत् मेरी अनुमति लेकर, स्वयमेव पांच महाव्रतों का प्रारोपण करके यावत् संलेखनासंथारा करके, समाधि को प्राप्त होकर काल के समय में काल करके ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारा रूप ज्योतिषचक्र से बहुत योजन, बहुत सैकड़ों योजन, बहुत हजारों योजन, बहुत लाखों योजन, बहुत करोड़ों योजन और बहुत कोडाकोड़ी योजन लांघकर, ऊपर जाकर सौधर्म ईशान सनत्कुमार माहेन्द्र ब्रह्मलोक लान्तक महाशुक्र सहस्रार आनत प्राणत पारण और अच्युत देवलोकों को तथा तीन सौ अठारह नववेयक विमानावासों को लांघ कर, विजयनामक महाविमान में देव के रूप में उत्पन्न हुआ है।। प्रश्न-“भन्ते ! जालोदेव को वहाँ काल-स्थिति (आयुमर्यादा) कितनी है ?" "गौतम ! उसको कालस्थिति बत्तोस सागरोपम की है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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