SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरित्र ही कुछ विस्तार से आया है। शेष चरित्रों में तो केवल सूचन ही है। पर इस पागम में जो भी पात्र पाये हैं उनका ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है, जो इतिहास के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं / प्रस्तुत प्रागम में सम्राट् श्रेणिक के जालि, मयालि, उपजालि, पुरुषसेन, वारिसेन, दीर्घदन्त, लष्ट दन्त, विहल्ल, वेहायस, अभयकुमार, दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त, हल्ल, द्रुम, द्रमसेन, महाद्र मसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन, पुष्पसेन, इन तेवीस राजकुमारों के साधनामय जीवन का वर्णन है। सम्राट श्रेणिक मगध साम्राज्य का अधिपति था। जैन-बौद्ध-और वैदिक, इन तीनों परम्परामों में श्रेणिक के सम्बन्ध में पर्याप्त चर्चाएं प्राप्त होती हैं। भागवत महापुराण 11 के अनुसार वह शिशूनागवंशीय कूल में उत्पन्न हुआ था। महाकवि अश्वघोष ने उस का कुल हर्यङ्ग लिखा है।१२ प्राचार्य हरिभद्र ने उनका कुल याहिक माना है। 3 रायचौधरी का मन्तव्य है 14 कि बौद्ध-साहित्य में जो हर्यङ्ग कुल का उल्लेख है, वह नागवंश का ही द्योतक है। कोविल्ल ने हर्यङ्ग का अर्थ सिंह किया है। पर उसका अर्थ नाग भी है / प्रोफेसर भाण्डारकर ने नाम दशक में बिम्बिसार की भी गणना की है और उन सभी राजानों का वंश भी नागवंश माना है। बौद्ध-साहित्य में इस कूल का नाम शिशूनागवंश लिखा है।१५ जैन ग्रन्थों में वरिणत वाहिक कुल भी नागवंश हो है / वाहिकजनपद नाग जाति का मुख्य केन्द्र रहा है। उस का कार्य-क्षेत्र प्रमुख रूप से तक्षशिला था, जो वाहिक जनपद में था। इसलिये श्रेणिक को शिशुनागवंशीय मानना असंगत नहीं है। पण्डित गेगर और भाण्डारकर ने सिलोन के पाली वंशानुक्रम के अनुसार बिम्बसार और शिशुनाग वंश को पृथक् बताया है। बिम्बसार शिशुनाग के पूर्व थे।१६ डाक्टर काशीप्रसाद का मन्तव्य है कि श्रेणिक के पूर्वजों का काशी के राजवंश के साथ पैत्रिक सम्बन्ध था, जहाँ पर तीर्थकर पार्श्वनाथ ने जन्म ग्रहण किया था। इसलिये श्रेणिक का कुलधर्म निग्रन्थ (जैन) धर्म था। प्राचार्य हेमचन्द्र ने भी राजा श्रेणिक के पिता प्रसेनजित को भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का श्रावक लिखा है।१७ श्रेणिक का जन्म-नाम क्या था? इस सम्बन्ध में जैन, बौद्ध और वैदिक परम्परा के ग्रन्थ मौन हैं। जैन प्रागमों में श्रेणिक के भंभसार, भिभसार, भिंभीसार ये नाम मिलते हैं।१६ श्रेणिक बालक था, उस समय राजमहल में आग लगी। सभी राजकुमार विविध बहुमूल्य वस्तुएं लेकर भागे। किन्तु श्रेणिक ने भंभा को ही 11. भागवतपुराण, द्वि. ख. 1-903 12. जातस्य हयंगकुले विशाले-बुद्धचरित्र, सर्ग 11, श्लोक 2 13. अावश्यक हरिभद्रीया वृत्तिपत्र 677 14. स्टडीज इन इण्डिया एन्डिक्वीटीज पृ-२१६ 15. महावंश गाथा 27-32 16. स्टडीज इन इण्डियन एन्टिक्वीटीज, पृ. 215-216 / 17. त्रिषष्ठि-१०॥६१८ / 18. क-सेणिए भंभसारे—ज्ञाताधर्मकथा, श्रत. 1 अ. 13 / ख-दशाश्रु तस्कन्ध दशा 10, सूत्र-१ ग--सेरिगए भंभसारे, सेरिणए भिभसारे --उववाई सूत्र, सू ७-पृ. 23, सू ६-पृ. 29 घ--सेणिए भिभसारे~-ठाणांग सूत्र, स्था. 9, पत्र 458 [7] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy