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________________ अंगप्रविष्ट का स्वरूप सदा सर्वदा सभी तीर्थंकरों के समय नियत होता है। वह ध्र व है, नियत है, शाश्वत है / उसे द्वादशांगी या गणिपिटक भी कहते हैं। अंग-साहित्य बारह विभागों में विभक्त है।' (1) प्राचार (2) सूत्रकृत (3) स्थान (4) समवाय (5) भगवती (6) ज्ञाताधर्मकथा (7) उपासकदशा (E) अन्तकृद्दशा (9) अनुत्तरोपपातिक दशा (10) प्रश्नव्याकरण (11) विपाक (12) दृष्टिवाद / दृष्टिवाद वर्तमान में अनुपलब्ध है। अनुत्तरोपपातिकदशा यह नौवां अंग है। प्रस्तुत प्रागम में ऐसे महान तपोनिधि साधकों का उल्लेख है जिन्होंने उत्कृष्टतम तप की साधना-आराधना कर प्रायु पूर्ण होने पर अनुत्तर विमानों में जन्म ग्रहण किया / विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध ये पांच अनुत्तर विमान हैं। अन्य सभी विमानों में श्रेष्ठ होने से इन्हें 'अनुत्तर' विमान कहा है। अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने वाले अनुत्तरीपपातिक कहे जाते हैं। प्रथम वर्ग में दस अध्ययन हैं, इसलिए इसे अनुत्तरौपपातिकदशा कहा है। दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि ऐसे मानवों की दशा यानी अवस्था का वर्णन होने से भी इसे अनुत्तरोपपातिक दशा कहा है। अनुत्तर विमानवासी देवों की एक विशेषता यह है कि वे परीत संसारी होते हैं। वहां से च्युत होकर एक या दो बार मानव-रूप में जन्म लेकर निर्वाण प्राप्त करते हैं। प्राचीन आगम व प्रागमेतर ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम के सम्बन्ध में जो उल्लेख सम्प्राप्त होते हैं, उनके अनसार वर्तमान में उपलब्ध अनुत्तरोपपातिक दशा में न वर्णन है और न वे चरित्र ही हैं। यह परिवर्तन कब हुआ, यह अन्वेषनीय है। नवांगी टीकाकार प्राचार्य अभयदेव ने इसे वाचनान्तर कहा है। मैंने अपने जैन श्रागम साहित्य मनन और मीमांसा" ग्रन्थ में इस सम्बन्ध में विस्तार से विवेचन किया है, अत: विशेष जिज्ञासु उसे देखें / वर्तमान में प्रस्तुत आगम तीन वर्गों में विभक्त है, जिनमें क्रमशः दस, तेरह और दस अध्ययन हैं। इस प्रकार तेतीस अध्ययनों में तेतीस महान् आत्मानों का बहुत ही संक्षेप में वर्णन है / जो घटनाएं और पाख्यान इसमें आये हैं. वे पल्लवित नहीं हैं, केवल संकेतमात्र हैं। प्रथम वर्ग में जालीकुमार का और तृतीय वर्ग में धन्य कुमार का 4. (क) समवायांग समवाय 148, मुनि कन्हैयालाल जी म. सम्पादित, प 138. (ख) नन्दी सूत्र, 57. 5. समवायांग प्रकीर्णक समवाय सूत्र 88. 6. 'तत्रानुत्तरेषु विमानविशेषेषूपपातो-जन्म अनुतरोपपातः स विद्यते येषां तेऽनुत्तरौपपातिकास्तप्रतिपादिका दशा: -दशाध्ययनप्रतिबद्धप्रथमवर्गयोगाद्दशा: ग्रन्थ-विशेषोऽनुत्तरोपपातिकदशास्तासां च सम्बन्धसूत्रम् -- अनुत्तरोपपातिकदशा अभयदेववत्ति 7. (क) नन्दीसूत्र 89 (ख) स्थानाङ्ग 10 / 114 ) समवायांग प्रकीर्णक समवाय 97 8. (क) तत्वार्थराजवार्तिक 1120, पृ. 73 (ख) कषायपाहुड भाग 1, पृ. 130 (ग) अंगपण्णत्ती 55 (घ) षट्खण्डागम शश२ 9.. तदेवमिहापि बाचनान्तरापेक्षयाऽध्ययनविभाग उक्तो न पुनरुपलभ्य मानवाचनापेक्षयेति - स्थानाङ्गवत्ति पत्र 483 [6] Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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