________________ परिशिष्ट शब्दार्थ ] [86 पाउन्भूते = प्रकट हुआ फुट्टतेहि = बड़े जोर से बजाते हुए मृदङ्ग आदि पांसुलि-कडएहि = पलसियों की पंक्ति से वाद्यों के नाद से युक्त पांसुलिय-कडाणं - पार्श्वभाग को अस्थियों बंभयारी- ब्रह्मचारी (हडियों) के कटकों की बत्तीसं = बत्तीस पाणं = पानी बत्तीसाए = बत्तीस पाणावली = पाण- एक प्रकार के बर्तनों की पंक्ति बत्तीसाप्रो= वत्तीस पाणि =हाथ बद्धीसग-छिड्डे = बद्धीसक नामक बाजे का छेद पात-जंघोरुणा = पैर, जंघा और उरुओं से बहवे = बहुत से पादाणं पैरों की बहिया - बाहर पाभातिय-तारिगा-प्रातःकाल का तारा बहू = बहुत पायंगुलियाणं = पैरों की अँगुलियों का बारसबारह पाय-चारेणं =पैदल चल कर बालत्तणं-बालकपन पाया• पैर बावत्तरि = बहत्तर पारणयंसि-पारण करने पर, पारणा में बाहाणं = भुजानों की पासायडि (डे)सए(ते) = श्रेष्ठ महल में बाहाया-संगलिया = बाहाय नाम वाले वृक्ष विशेष पि = भी की फली पिठि-करंडग-संधीहि -पृष्ठ-करण्डक (पीठ बाहाहि = भुजाओं से के उन्नत प्रदेशों) की सन्धियों से बिलमिव = बिल के समान पिठि-करंडयाणं = पीठ की हड्डियों के बीणा-छिड्डे = वीणा का छेद उन्नत प्रदेशों की बुद्धणं = बुद्ध, ज्ञानवान् पिठि-मवस्सिएणं = पीठ के साथ मिले हुए बोद्धव्वे - जानना चाहिए पिठि-माइया = पृष्ठिमातृक कुमार बोरी-करील्ल =बेर की कोंपल पिता(या) पिता बोहएणं = दूसरों को बोध कराने वाले पुच्छति = पूछता है भंते हे भगवन् ! पुठिले पृष्ठिमायी कुमार भगवं = भगवान् पुत्ते = पुत्र भगवंता= भगवान् पुन्नसेणे = पुण्यसेन कुमार भगवता (या)- भगवान् ने पुरिससेणे = पुरुषसेन कुमार भगवतो= भगवान् का पुव्वरत्तावरत्तकाल-समयंसि = मध्य रात्रि के समय भज्जणयकभल्ले = चने आदि भूनने की कढ़ाई भत्त = भात, भोजन पुन्वरत्तावरत्तकाले मध्य रात्रि में भद्द - भद्रा सार्थवाहनी को पुवाणुपुब्बीए= क्रम से भद्दा = भद्रा नाम वाली पेढालपुत्त = पेढालपुत्र कुमार भद्दाए - भद्रा सार्थवाहिनी का पेल्लए- पेल्लक कुमार भद्राप्रो = भद्रा नाम वाली से पोरिसीए = पौरुषी, प्रहर, दिन या रात का चौथा / भन्नति = कहा जाता है भाग भवणं = भवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org