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________________ तृतीय वर्ग] में बड़ा निपूण था। उस सोमिल ब्राह्मण के सोमश्री नामकी ब्राह्मणी (पत्नी) थी। सोमश्री सुकुमार एवं रूपलावण्य और यौवन से सम्पन्न थी। उस सोमिल ब्राह्मण की पुत्री और सोमश्री ब्राह्मणी की पात्मजा सोमा नाम की कन्या थी, जो सुकोमल यावत बड़ी रूपवती थी। रूप, प्राकृति तथा लावण्य-सौन्दर्य की दृष्टि से उस में कोई दोष नहीं था, अतएव वह उत्तम तथा उत्तम शरीरवाली थी। वह सोमा कन्या अन्यदा किसी दिन स्नान कर यावत् वस्त्रालंकारों से विभूषित हो, बहुत सी कुब्जाओं, यावत् महत्तरिकाओं से घिरी हुई अपने घर से बाहर निकली। घर से बाहर निकल कर जहां राजमार्ग था, वहाँ आई और राजमार्ग में स्वर्ण की गेंद से खेल खेलने लगी। सोमिलकन्या का अन्तःपुर में प्रवेश १७–तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी समोसढे / परिसा निग्गया। तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्ध? समाणे व्हाए जाव विभूसिए गयसुकुमालेणं कुमारेणं सद्धि हथिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि उधुब्बमाणीहि बारवईए नयरीए मज्झमझेणं प्ररहयो अरिढणेमिस्स पायवंदए निग्गच्छमाणे सोमं दारियं पासइ, पासित्ता सोमाए दारियाए रूवेण य जोवणेण य लावणेण य जायविम्हए कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-"गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! सोमिलं माहणं जायित्ता सोमं दारियं गेण्हह, गेण्हित्ता कण्णतेउरंसि पक्खिवह / तए णं एसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स भारिया भविस्सइ / तए णं कोड बिय जाव [पुरिसा सोमं दारियं गेण्हित्ता कण्णंतेउरंसि] पक्खिवंति / उस काल और उस समय में अरिहंत अरिष्टनेमि द्वारका नगरी में पधारे। परिषद् धर्मकथा सुनने को पाई। उस समय कृष्ण वासुदेव भी भगवान् के शुभागमन के समाचार से अवगत हो, स्नान कर, यावत् वस्त्रालंकारों से विभूषित हो गजसुकुमाल कुमार के साथ हाथी के होदे पर आरूढ़ होकर कोरंट पुष्पों की माला सहित छत्र धारण किये हुए, श्वेत एवं श्रेष्ठ चामरों से दोनों ओर से निरन्तर वीज्य का नगरी के मध्य भाग से होकर अर्हत अरिष्टनेमि के चरण-वन्दन के लिये जाते हुए, राज-मार्ग में खेलती हुई उस सोमा कन्या को देखते हैं। सोमा कन्या के रूप, लावण्य और कान्ति-युक्त यौवन को देखकर कृष्ण वासुदेव अत्यन्त आश्चर्य चकित हुए। तब वह कृष्ण वासुदेव आज्ञाकारी पुरुषों को बुलाते हैं / बुलाकर इस प्रकार कहते हैं---- ____ "हे देवानुप्रियो ! तुम सोमिल ब्राह्मण के पास जानो और उससे इस सोमा कन्या को याचना करो, उसे प्राप्त करो और फिर उसे लेकर कन्याओं के अन्तःपुर में पहुँचा दो। यह सोमा कन्या, मेरे छोटे भाई गजकुसुमाल को भार्या होगी।" तब आज्ञाकारी पुरुषों ने यावत् वैसा ही किया। विवेचन–'कन्नतेउरंसि'—इस पद में कन्या और अन्तःपुर ये दो शब्द हैं। कन्या, कुमारी या अविवाहिता लड़की का नाम है / अन्तःपुर-स्त्रियों के राजकीय प्रावास भवन को कहते हैं। दोनों शब्दों को मिलाने पर अर्थ होता है--वह राजमहल जिसमें अविवाहित लड़कियाँ रहती हैं। प्रस्तुत सूत्र में 'कन्न तेउरंसि' शब्द के प्रयोग से यह प्रतीत होता है कि उस समय गजसुकुमाल के विवाहार्थ अनेक कुमारियां एकत्रित की गई थीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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