________________ प्रथम वर्ग ] [16 रात का होता है। इसमें चौविहार तेले-तेले पारणा करना होता है। ग्यारहवीं प्रतिमा का समय एक अहोरात्र है / बारहवीं प्रतिमा केवल एक रात्रि की है / इसका आराधन चौविहार तेले से होता है। इन सभी प्रतिमाओं का अाराधन श्रीगौतम मुनि जी ने किया था। 'गुणरयणं पि तवोकम्म' का अर्थ है—गुणरत्न तपः कर्म / तपों के नाना प्रकारों में गुणरत्न भी एक प्रकार का तप है / इसे 'गुरग-रत्न-संवत्सर तप' भी कहते हैं / यह तप सोलह महीनों में सम्पन्न होता है / जिस तप में गुण रूप रत्नों वाला सम्पूर्ण वर्ष बिताया जाय वह तप "गुरण-रत्न संवत्सर' तप कहलाता है। इस तप में सोलह मास लगते हैं। जिसमें से 407 दिन तपस्या के और 73 दिन पारणा के होते हैं / यथा पण्णरस वीस चउव्वीस चेव चउव्वीस पण्णवीसा य / चउव्वीस एक्कवीसा, चउवीसा सत्तबीसा य / / 1 // तीसा तेतीसा वि य चउव्वीस छव्वीस अट्ठवीसा य / तीसा वत्तीसा वि य सोलसमासेसु तवदिवसा / / 2 / / पण्णरस दसट्ठ छ पंच चउर पंचसु य तिण्णि तिण्णि त्ति / पंचसु दो दो य तहा सोलसमासेसु पारणगा / / 3 / / अर्थात्-पहले मास में पन्द्रह, दूसरे मास में बीस, तीसरे मास में चौबीस, चौथे मास में चौबीस, पांचवे मास में पच्चीस, छठे मास में चौबीस, सातवें मास में इक्कीस, आठवें मास में चौबीस, नौवें मास में सत्ताईस, दसवें मास में तीस. ग्यारहवें मास में तैतीस, बारहवें मास में चौबीस, तेरहवें मास में छब्बीस, चौदहवें मास में अट्ठाईस, पन्द्रहवें मास में तीस और सोलहवें मास में बत्तीस दिन तपस्या के होते हैं। ये सब मिलाकर 407 दिन तपस्या के होते हैं। पारणा के दिन इस प्रकार हैं-- पहले मास में पन्द्रह, दूसरे मास में दस, तीसरे मास में पाठ, चौथे मास में छह, पांचवें मास में पांच | में चार, सातवें मास में तीन, पाठवें मास में तीन, नौवें मास में तीन, दसवें मास में तीन, ग्यारहवें मास में तीन, बारहवें मास में दो, तेरहवें मास में दो, चौदहवें मास में दो, पन्द्रहवें मास में दो, सोलहवें मास में दो दिन पारणे के होते हैं। ये सब मिलाकर 73 दिन पारणा के होते हैं / तपस्या के 407 और पारणा के 73 ये दोनों मिलाकर 480 दिन होते हैं अर्थात् सोलह महीनों में यह तप पूर्ण होता है। इस तप में, किसी महीने में तपस्या और पारणा के दिन मिलाकर तीस से अधिक हो जाते हैं और किसी मास में तीस से कम रह जाते हैं, किन्तु कम और अधिक की एक दूसरे में पूर्ति कर देने से तीस की पूर्ति हो जाती है, इस तरह से यह तप बराबर सोलह मास में पूर्ण हो जाता है। सात संक्षेप में इस तप के अन्तर्गत पहले मास में एकान्तर उपवास किया जाता है, दूसरे मास में बेले-बेले पारणा करना होता है, तीसरे महीने में तेले-तेले पारणा करना पड़ता है। इसी प्रकार बढ़ाते हुए सोलहवें महीने में सोलह-सोलह उपवास करके पारणा किया जाता है / इस तप में दिन को उत्कुटुक आसन में बैठकर सूर्य की आतापना ली जाती है और रात्रि को वस्त्ररहित वीरासन में बैठकर ध्यान लगाना होता है / गुणरत्नसंवत्सर तप का यन्त्र भी देखने में आता है, जो इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org