________________ 12] [अन्तकृद्दशा दल था ? कितनी रानियाँ थीं ? कितनी गरिएकाएं थीं ? आदि सभी बातों का सूत्रकार ने स्पष्ट उल्लेख किया है। इस का यह अर्थ नहीं समझना चाहिए कि सूत्रकार ने जिन लोगों का परिचय कराया है, वे सब द्वारका में ही रहा करते थे। 'दुद्दन्तसाहस्सोणं'- अर्थात् शत्रुओं द्वारा जिनका दमन न किया जा सके, जिन्हें पराजित न किया जा सके / महाराज कृष्ण के राज्य में ऐसे 60 हजार दुर्दान्त थे / 'बलवग्गसाहस्सीणं' अर्थात् बल का अर्थ है सैनिक / समूह को भी बल कहते हैं / दोनों को मिलाकर अर्थ होगा-सैनिकसमूह / भाव यह है कि वासुदेव कृष्ण के पास 56 हजार सैन्य-समूह था। महासेन उस सैन्य-समूह का प्रमुख था। वासुदेव कृष्ण का राज्य तीन खंडों में था। इतने बड़े प्रदेश में 56 हजार ही सैनिक कैसे हो सकते हैं ? तीनों खंडों की सुरक्षार्थ तो करोड़ों सैनिक अपेक्षित हैं। फिर सूत्रकार ने जो 56 हजार सैनिक बताये इसका क्या कारण है ? इस प्रश्न का समाधान इस प्रकार हो सकता है कि 'बलवग्ग' शब्द सैन्यसमूह का बोधक है। सैन्यसमूह का अर्थ है-सैनिकों का समुदाय, अत: सूत्रकार ने जो बलवर्ग शब्द दिया है यह सैनिकदलों-सैनिक टुकड़ियों का परिचायक है / फिर एक सैनिक दल में भले ही हजारों सैनिकों की संख्या हो / अतः यहाँ यही भाव निष्पन्न होता है कि कृष्ण महाराज के पास 56 हजार सैनिक-समुदाय थे / ईसर (ईश्वर) याने यूवराज। तलवर---राजा के कृपापात्र को अथवा जिन्होंने राजा की ओर से उच्च प्रासन (पदवी विशेष) प्राप्त कर लिया है, ऐसे नागरिकों को तलवर कहते हैं / जिसके निकट दो-दो योजन तक कोई ग्राम न हो उस प्रदेश को मडम्ब कहते हैं, मडम्ब के अधिनायक को माडम्बिक कहा जाता है। कौटुम्बिक-कुटुम्बों के स्वामी को कौटुम्बिक और व्यापारी पथिकों के समूह के नायक को सार्थवाह कहते हैं। _ 'अद्धभरहस्स'---इस में दो पद हैं--एक अर्ध और दूसरा भरत / अर्द्ध प्राधे को कहते हैं, भरत का अर्थ है भारतवर्ष / भरतक्षेत्र का अर्द्ध चन्द्र जैसा आकार है। तीन ओर लवरणसमुद्र और उत्तर में चुल्ल हिमवन्त पर्वत है / अर्थात् लवणसमुद्र और चुल्लहिमवन्त पर्वत से उसकी सीमा बंधी हुई है। भारत के मध्य में वैताढ्य पर्वत है। इस से भरतक्षेत्र के दो भाग हो जाते हैं। वैताढ्य की दक्षिण अोर का दक्षिणार्ध भरत और उत्तर की ओर का उत्तरार्ध भरत है / चुल्ल हिमवन्त पर्वत के ऊपर से निकलने वाली गंगा और सिन्धु नदियाँ वैताढ्य की गुफाओं से निकलकर लवणसमुद्र में मिलती हैं। इस से भरत के छह विभाग होते हैं / इन्हीं छह विभागों को छह खंड कहते हैं / चक्रवर्ती का राज्य इन छह खंडों में होता है और वासुदेव का तीन खंडों में अर्थात् अर्द्ध भरत में होता है / महाराज कृष्ण वासुदेव थे, अतः वे अर्द्ध भरत पर शासन कर रहे थे। ७--तस्थ णं बारवईए नयरीए अंधगवण्ही नाम राया परिवसइ / महया हिमवंत०१ वष्णयो। तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाई तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि एवं जहा महब्बले-. 1. अंगसुत्तारिण-भाग 3, पृ. 543. में यह पाठ इस प्रकार है-- हिमवंत-[महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे] वण्णो / [ ] इतना पाठ अधिक है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org