________________ परिशिष्ट-२] [ 166 (10) राजगृहः--- ___ मगध की राजधानी राजगह थी, जिसे मगधपुर, क्षितिप्रतिष्ठित, चणकपुर, ऋषभपुर और कुशाग्रपुर आदि अनेक नामों से पुकारा जाता रहा है। आवश्यक चूणि के अनुसार कृशाग्रपुर में प्रायः आग लग जाती थी। अतः राजा श्रेणिक ने राजगृह बसाया / ' महाभारत युग में राजगृह में जरासंघ राज्य करता था / 2 रामायण काल में वीसवें तीर्थकर मुनिसुव्रत का जन्म राजगृह में हुआ था।' दिगम्बर जैन ग्रन्थों के अनुसार भगवान् महावीर का प्रथम उपदेश और संघ की संस्थापना राजगृह में हुई थी। अन्तिम केवली जम्बू की जन्मस्थली निर्वाणस्थली भी राजगृह रही है / " धन्ना और शालिभद्र जैसे धन कुबेर राजगृह के निवासी थे / परम साहसी महान भक्त सेठ सुदर्शन भी राजगृह का रहने वाला था। प्रतिभामूर्ति अभयकुमार आदि अनेक महान् आत्मानों को जन्म देने का श्रेय राजगृह को था।' पांच पहाड़ियों से घिरे होने के कारण उसे गिरिबज भी कहते थे। उन पहाड़ियों के नाम जैन, बौद्ध और वैदिक इन तीनों ही परम्पराओं में पृथक्-पृथक् रहे हैं। ये पहाड़ियां आज भी राजगह में हैं / वैभार और विपुल पहाड़ियों का वर्णन जैन ग्रन्थों में विशेष रूप से पाया है। वृक्षादि से वे खूब हरी-भरी थीं। वहां अनेक जैन-क्षमणों ने निर्वाण प्राप्त किया था। वैभार पहाड़ी के 1. पावश्यक चूणि 2, पृ. 158 2. भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण : एक अनुशीलन्, (क) राजगिहे मुरिण सल्फयदेवा पउमा सुमित्त राएहि / -तिलोय पण ति / (ख) हरिवंशपुराण, मर्ग 60 (ग) उत्तरपुराण, पर्व 67 4. (क) हरिवंशपुराण, सर्ग 2, श्लोक 61-62 (ख) पद्मपुराण, पर्व 2, श्लोक 113 (ग) महापुराण, पर्व 1, श्लोक 196 5. उत्तरपुराण, पर्व 76 जम्बूसामी चरियं, पर्व 5-13. 6 त्रिपष्टि. 10 / 10 / 136-148 7. अन्त कृतदशांग 8. विपष्टि. 9. जैन-विपुल, रत्न, उदय, स्वर्ग और वैभार वैदिक-बैहार, बाराह, वृषभ, ऋपिगिरि, और चैत्यक बौद्ध----चन्दन, मिज्झकूट, वेभार, इसगिति और वेपन्न / -सुत्तनिपात की अट्टकथा 2, पृ. 382 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org