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________________ परिशिष्ट 2 / | 187 भगवती, औपपातिक और निरयावलिका में कोणिक का विस्तृत वर्णन है। राज्य-लोभ के कारण इसने अपने पिता श्रेणिक को कैद में डाल दिया था। श्रोणिक की मृत्यु के बाद कोणिक ने अंगदेश में चम्पानगरी को अपनी राजधानी बनाया था। अपने सहोदर भाई हल्ल और विहल्ल से हार और सेचनक हाथी को छीनने के लिए इसने नाना चेटक से भयंकर युद्ध भी किया था। कोणिक-चेटकयुद्ध प्रसिद्ध है। (4) चेल्लणा राजा श्रेणिक की रानी और वैशाली के अधिपति चेटक राजा की पुत्री। चेल्लणा सुन्दरी, गुणवती, बुद्धिमती, धर्म-प्राणा नारी थी। श्रेणिक राजा को धार्मिक बनाने में, जैनधर्म के प्रति अनुरक्त करने में चेल्लणा का बहुत बड़ा योग था। चेल्लणा का राजा श्रेणिक के प्रति कितना प्रगाढ़ अनुराग था, इसका प्रमाण “निरयावलिका' में मिलता है / कोणिक, हल्ल और विल्ल ये तीनों चेल्लणा के पुत्र थे। (5) जम्बूस्वामी ग्रार्य सुधर्मा के शिष्य जम्बू एक परम जिज्ञासु के रूप में प्रागमों में सर्वत्र दीख पड़ते हैं / जम्बू राजगृह नगर के समृद्ध, वैभवशाली-इभ्य-सेठ के पुत्र थे। पिता का नाम ऋषभदत्त और माता का नाम धारिणी था / जम्बूकुमार की माता ने जम्बूकुमार के जन्म से पूर्व स्वप्न में जम्बू वृक्ष देखा था, इसी कारण पुत्र का नाम जम्बूकुमार रखा। सुधर्मा की वाणी से जम्बूकुमार के मन में वैराग्य जागा। परन्तु माता-पिता के अत्यन्त आग्रह से विवाह की स्वीकृति दी। आठ इभ्य-वर सेठों की कन्याओं के साथ जम्बूकुमार का विवाह हो गया। जिस समय जम्बुकमार अपनी पाठ नवविवाहिता पत्नियों को प्रतिबोध दे रहे थे. उस समय एक चोर चोरी करने को पाया / उसका नाम प्रभव था। जम्बूकुमार की वैराग्यपूर्ण वाणी सुनकर वह भी प्रतिबुद्ध हो गया। 501 चोर, 8 पत्नियाँ, पत्नियों के 16 माता-पिता, स्वयं के 2 माता-पिता और स्वयं जम्बूकुमार इस प्रकार 528 ने एक साथ सुधर्मा के पास दीक्षा ग्रहण की। जम्बूकुमार 16 वर्ष गृहस्थ में रहे, 20 वर्ष छद्मस्थ रहे, 44 वर्ष केवली पर्याय में रहे / 80 वर्ष की आयु भोग कर जम्बू स्वामी अपने पाट पर प्रभव को छोड़कर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए। (6) जमालि वैशाली के क्षत्रियकुण्ड का एक राजकुमार था। एक बार भगवान् क्षत्रियकुण्ड ग्राम में पधारे / जमालि भी उपदेश सुनने को आया / वापिस घर लौट कर जमालि ने अपने माता-पिता से दीक्षा की अनुमति मांगी। माता घबरा उठो, वह मूच्छित हो गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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