________________ अष्टम वर्ग] [ 177 आयम्बिल-वर्धमान स्थापना-यन्त्र 1.22:ENERCUMULCEIPRELIECURUICLEARLEARUEUPARDEveण्ट यादार SPSNESSPiriSTEJEEntral SHEEvanshin or or o orr રક રદ ર ર ર રર રર or r RSSETTLECTRESERSOLONE ar mm Mmm m GA0 or LEAREDEESLEELTURNORTERESTLINE or or or on | 174 175/ 176 177/178 1761 81182 183 184 185 186 187188 1861 91/162 13 14 195166 1979 198 1991 1 InverUPादERICROMANIFICATUSHARABLUEnESIRABARICATEMENT ENSUSainingInidant a rND I NETIO-VRITTURISTISjTaman51540 निक्षेप : उपसंहार १५---एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण जाव' संपत्तेणं अट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयम? पण्णत्त / ___ अंतगडदसाणं अंगस्स एगो सुयखंधो / अट्ठ वग्गा / अठ्ठसु चेव दिवसेसु उद्दिस्सिज्जंति / तत्थ पढमबिइयवागे दस-दस उद्देसगा। तइयवग्गे तेरस उद्देसगा। चउत्थ-पंचमवग्गे दस-दस उद्देसगा। छट्ठवग्गे सोलस उद्देसगा। सत्तमवग्गे तेरस उद्देसगा / अट्ठमवग्गे दस उद्देसगा / सेसं जहा नायाधम्मकहाणं। इस प्रकार हे जंवू ! यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने आठवें अंग अन्तकृद्दशा का यह अर्थ कहा है, ऐसा मैं कहता हूँ। अंतगडदशा अंग में एक थ तस्कंध है / आठ वर्ग हैं। पाठ ही दिनों में इनका वाचन होता है। इसमें प्रथम और द्वितीय वर्ग में दस दस उद्देशक हैं, तीसरे वर्ग में तेरह उद्देशक हैं, चौथे और पाँचवे वर्ग में दस-दस उद्देशक हैं, छठे वर्ग में सोलह उद्देशक हैं। सातवें वर्ग में तेरह उद्देशक हैं और आठवें वर्ग में दस उद्देशक हैं / शेष वर्णन ज्ञाताधर्मकथा के अनुसार जानना चाहिए। 00 1. वर्ग 1, सूत्र 2. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org