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________________ 176 ] [ अन्तकृद्दशा एक आयंबिल किया, करके उपवास किया, करके दो आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके तीन पायंबिल किये, करके उपवास किया, करके चार आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके पाँच पायंबिल किये, करके उपवास किया, करके छह आयंबिल किये, करके उपवास किया। ऐसे एक एक की वृद्धि से आयंबिल बढ़ाए / बीच-बीच में उपवास किया, इस प्रकार सौ आयंबिल तक करके उपवास किया। इस प्रकार महासेनकृष्णा आर्या ने इस 'वर्द्ध मान-आयंबिल' तप की आराधना चौदह वर्ष, तीन माह और बीस अहोरात्र की अवधि में सूत्रानुसार विधिपूर्वक पूर्ण की। आराधना पूर्ण करके आर्या महासेनकृष्णा जहाँ अपनी गुरुणी आर्या चन्दनबाला थीं, वहाँ पाई और चंदनबाला को वंदनानमस्कार करके, उनकी आज्ञा प्राप्त करके, बहुत से उपवास आदि से प्रात्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। __इस महान् तपतेज से महासेनकृष्णा आर्या शरीर से दुर्वल हो जाने पर भी अत्यन्त देदीप्यमान लगने लगी। एकदा महासेनकृष्णा प्रार्या को स्कंदक के समान धर्म-चिन्तन उत्पन्न हुआ। आर्यचन्दना प्रार्या से पूछकर यावत् संलेखना की और जीवन-मरण की आकाँक्षा से रहित होकर विचरने लगी। ___ महासेनकृष्णा आर्या ने आर्यचन्दना आर्या के पास सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, पूरे सत्रह वर्ष तक संयमधर्म का पालन करके, एक मास की संलेखना से प्रात्मा को भावित करके साठ भक्त अनशन को पूर्णकर यावत् जिस कार्य के लिये संयम लिया था उसकी पूर्ण आराधना करके अन्तिम श्वास-उच्छ्वास से सिद्ध बुद्ध हुई। गाथार्थ-एव श्रेणिक राजा की भार्यानों में से पहली काली देवी का दीक्षाकाल आठ वर्ष का, तत्पश्चात् क्रमश: एक-एक वर्ष की व द्धि करते-करते दसवीं महासेनकृष्णा का दीक्षाकाल सत्तरह वर्ष का जानना चाहिए। विवेचन -"यायंबिलवड्ढमाण”—यायंबिल-वर्धमान-बह तप है जिसमें आयंबिल क्रमश: बढाया जाता है / इस तप की आराधना में 14 वर्ष 3 मास और 20 दिन लगते हैं / पिछले तपों का परिशीलन करने से पता चलता है कि सूत्रकार ने तपों की जो दिन-संख्या लिखी है, उसमें तपस्या के दिन और पारणे के दिन, इस प्रकार सभी दिन संकलित किए जाते हैं। यदि उसी पद्धति का अनुसरण किया जाए तो इसका काल-मान 14 वर्ष 3 माह और 20 दिन कैसे हो सकता है ? समाधान यही है कि इसमें पारणे का कोई दिन नहीं आता। इसके दो कारण हैंप्रथम तो सूत्रकार जैसे पीछे पारणे का निर्देश करते चले आ रहे हैं, व से यहां पर सूत्रकार ने निर्देश नहीं किया, दूसरा यदि पारणे के सब दिन भी साथ में सम्मिलित कर दिए जाएं तो इस तप की दिनसंख्या 14 वर्ष 3 मास 20 दिन न रहकर 14 वर्ष 10 दिन हो जाती है। अतः यही समझना ठीक है कि आर्या महासेनकृष्णा ने 14 वर्ष 3 मास और 20 दिन तक तप किया, बीच में कोई पारणा नहीं किया। आयंबिल-वर्धमान-तप का स्थापनायंत्र इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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