________________ अष्टम वर्ग] [ 163 दश-दशमिका भिक्ष-प्रतिमा की आराधना करते समय आर्या सुकृष्णा प्रथम दशक में एक-एक दत्ति भोजन और एक-एक दत्ति पानी की ग्रहण करती है। इसी प्रकार एक-एक दत्ति बढ़ाते हुए दसवें दशक में दस-दस दत्तियां भोजन की और पानी की स्वीकार करती हैं। दश-दशमिका भिक्षु-प्रतिमा में एक सौ रात्रि-दिन लग जाते हैं। इसमें साढ़े पांच सौ (550) भिक्षाएँ और 11 सौ दत्तियां ग्रहण करनी होती हैं। सूत्रोक्त विधि के अनुसार दश-दशमिका भिक्षुप्रतिमा की आराधना करने के अनन्तर आर्या सुकृष्णा ने उपवास, बेला, तेला, चौला, पचौला, छह, सात, आठ, से लेकर 15 तथा मासखमण तक की तपस्या के अतिरिक्त अन्य अनेकविध तपों से अपनी आत्मा को भावित किया। इस कठिन तप के कारण प्रार्या सुकृष्णा अत्यधिक दुर्बल हो गई यावत् संपूर्ण कर्मों का क्षय करके मोक्षगति हो प्राप्त हुई / विवेचन--सप्त-सप्तमिका भिक्षुप्रतिमा की तरह इस सूत्र में कथित अष्टअष्टमिका, नवनवमिका तथा दश-दशमिका भिक्षुप्रतिमाएँ होती हैं। तीनों का अन्तर यंत्रों से स्पष्ट होता है। MAAVAT अहमहमिया मिरवू-पडिमा REARRC R222222216 44|4|4|444 HOTOS 777777 // Jछ। ६४दिवसाच्दतिम्रो Ex.' NETHAN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org