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________________ षष्ठ वर्ग ] [ 143 संभला देना चाहिये था, पर उदायन ने सोचा--राज्य को बन्धन का कारण समझ कर मैं त्याग रहा है, फिर अपने पुत्र अभीच कूमार को इस बन्धन में क्यो फसाऊ? अपना बन्धन कुमार के गले में उसके साथ अन्याय होगा। अन्त में राजा ने सारे राज्य में घोषणा कर दी कि मेरा उत्तराधिकारी मेरा भागिनेय केशी कूमार है, उसका राज्याभिषेक करके मैं दीक्षित हो जाऊंगा। इस घोषणा से उत्तराधिकारी राजकुमार को महान् दुःख हुआ और वह रुष्ट होकर अपने राज्य से बाहर चला गया / इधर उदायन भानजे को राजा बनाकर दीक्षित हो गये। एक बार मुनि उदायन अस्वस्थ हो गये। वे भ्रमण करते हुए अपनी नगरी वीतभयपुर में प्राए पर केशीकुमार बदल चुका था। उसको भय हो गया कि कहीं उदायन पुनः राज्य न लेना चाहते हों ! अतः उसने नगर में सबको आदेश दे दिया कि—'कोई व्यक्ति उदायन को आहार न दे और न विश्राम करने का स्थान ही दे। जो इस आदेश की अवहेलना करेगा उसे राजा परिवार सहित मौत के घाट उतार देगा।' मत्यु के भय से किसी भी नागरिक ने उन्हें आश्रय नहीं दिया। उदायन सारे नगर में घूमे, तब कहीं एक कुम्हार को दया आ गई। उसने उन्हें स्थान दिया। अपने गुप्तचरों से यह सूचना पाकर राजा ने उदायन को मरवाने के लिए एक वैद्य को भेजा / वैद्य ने उपचार के निमित्त उदायन को विष खिला दिया। शरीर में अपार वेदना हुई पर उदायन मुनि ने विष-वेदना को शान्तिपूर्वक सहन किया। भावना की निर्विकारता से उदायन मुनि को अवधिज्ञान हो गया। ज्ञान-प्रकाश होते ही स्थिति समझने में देर न लगी, पर उन्होंने अपने मन को विक्षुब्ध नहीं होने दिया। धर्म-ध्यान और शुक्लध्यान की सीढियां पार करके अन्त में केवलज्ञान प्राप्त किया और मुक्त हो गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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