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________________ पष्ठ वर्ग] कर अर्जुनमाली को पकड़ लिया और उसकी औंधी मुश्के बांधकर उसे एक ओर पटक दिया। फिर उसकी पत्नी वन्धमती मालिन के साथ विविधप्रकार से कामक्रीडा करने लगे। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में बताया है कि उन गोष्ठिक पुरुषों ने अर्जुनमाली को अवकोटक बन्धन से बाँधा, जिसका अर्थ होता है—गले में रस्सी डालकर उसे पीछे मोड़ना तथा दोनों भुजाओं को पीठ के पीछे ले जाकर बाँधना / जनसाधारण की भाषा में इसे मुश्क बाँधना कहते हैं / निच्चला पच्छण्णा--का अर्थ इस प्रकार है-निच्चला-निश्चल-शरीर के व्यापार से रहित / निष्फंदा-निष्पंद-कम्पन से भी रहित / तुसिणोया-तुष्णीक-मौन ! पच्छण्णा-प्रच्छन्न-छिपे हुए / अर्जुन का प्रतिशोध ५-तए णं तस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणिस्स भगवो कल्लाल्लि जाव' पुरफच्चणं करेमि, जग्णुपायपडिए पणामं करेमि तो पच्छा रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणे विहरामि / तं जइ णं मोग्गरपाणो जक्खे इह सण्णिहिए होते, से णं कि मम एयारूवं प्रावई पावेज्जमाणं पासते ? तं नत्यि णं मोगरपाणी जक्खे इह सण्णिहिए / सुन्चत्तंणं एस कठे। तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमेयारूवं अज्झस्थियं जाव बियाणेत्ता प्रज्जुणयस्स मालागारस्स सरीरयं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता तडतडस्स बंधाई छिदइ, छिदित्ता तं पलसहस्सणिफणं अयोमयं मोग्गरं गेण्हइ, गेण्हित्ता ते इथिसत्तमे छ पुरिसे घाएइ। तए णं से अज्जुणए मलागार मोग्गरपाणिणा जखेणं अण्णाइवें समाणे रायगिहस्स नयरस्स परिपेर तेणं कल्लाल्लि इस्थिसत्तमे छ पुरिसे धाएमाणे घाएमाणे विहरइ / यह देखकर अर्जुनमाली के मन में यह विचार आया-मैं अपने बचपन से ही भगवान् मुद्गरपाणि को अपना इष्टदेव मानकर इसकी प्रतिदिन भक्तिपूर्वक पूजा करता आ रहा हूं। इसकी पूजा करने के बाद ही इन फूलों को बेचकर अपना जीवन-निर्वाह करता हूं। तो यदि मुद्गरपाणि यक्ष देव यहां वास्तव में ही होता तो क्या मुझे इस प्रकार विपत्ति में पड़ा देखता रहता ? अतः निश्चय होता है कि वास्तव में यहां मुद्गरपाणि यक्ष नहीं है। यह तो मात्र काष्ठ का पुतला है। तब मुद्गरपाणि यक्ष ने अर्जुनमाली के इस प्रकार के मनोगत भावों को जानकर उसके शरीर में प्रवेश किया और उसके बन्धनों को तडातड़ तोड़ डाला। तब उस मुदगरपाणि यक्ष से प्राविष्ट अजुनमालो ने लाहमय मुद्गर को हाथ में लेकर अपनी बन्धमती भार्या सहित उन छहों गोष्ठिक पुरुषों को उस मुद्गर के प्रहार से मार डाला। ___ इस प्रकार इन सातों का घात करके मुद्गरपाणि यक्ष से अाविष्ट (वशीभूत) वह अर्जुनमाली राजगृह नगर की बाहरी सीमा के आसपास चारों ओर छह पुरुषों और एक स्त्री, इस प्रकार सात मनुष्यों की प्रतिदिन हत्या करते हुए घूमने लगा। राजगृह नगर में आतंक ६--तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग जाव [तिग-च उक्क-चच्चर-चउम्मुह] महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खई एवं भासेइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ१. वर्ग 6. मूत्र 2. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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