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________________ पंचम वर्ग ] [ 106 एवं गंधारी, लक्खणा, सुसीमा, जम्बवई, सच्चभामा, रुप्पिणी, अट्ठवि पउमावईसरिसयानो, प्रट्ठ अज्झयणा। उस काल और उस समय में द्वारका नगरी थी। उसके समीप रैवतक नाम का पर्वत था। उस पर्वत पर नन्दनवन नामक उद्यान था। द्वारका नगरी में श्रीकृष्ण वासुदेव राज्य करते थे। उन कृष्ण वासुदेव की गौरो नाम की महारानी थी, औपपातिक सूत्र के अनुसार रानी का वर्णन जान लेना चाहिए / एक समय उस नन्दनवन उद्यान में भगवान् अरिष्टनेमि पधारे। कृष्ण वासुदेव भगवान् के दर्शन करने के लिए गये / जन-परिषद् भी गई। परिषद् लौट गई। कृष्ण वासुदेव भी अपने राज-भवन में लौट गये। तत्पश्चात् गौरी देवी पद्मावती रानी की तरह दीक्षित हुई यावत् सिद्ध हो गई। इसी तरह (3) गांधारी, (4) लक्ष्मणा, (5) सुसीमा, (6) जाम्बवती, (7) सत्यभामा, और (8) रुक्मिणी के भी छह अध्ययन पद्मावती के समान ही समझने चाहिए। 9-10 अध्ययन मूलश्री-मूलदत्ता १०--तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए रेवयए पबए, नंदणवणे उज्जाणे, कण्हे वासुदेवे / तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हस्स वासुदेवस्स पुत्ते जंबवईए देवीए अत्तए संबे नामं कुमारे होत्था-अहोणपडिपुष्णपंचिदियसरीरे / तस्स णं संबस्स कुमारस्स मूलसिरी नामं भज्जा वि निग्गया, जहा पउमावई / जं नवरं देवाणुप्पिया ! कण्हं वासुदेवं प्रापुच्छामि जाव' सिद्धा। एवं मूलदत्ता वि। उस काल उस समय में द्वारका नगरी के पास रैवतक नाम का पर्वत था, जहां एक नन्दन वन उद्यान था। वहां कृष्ण-वासुदेव राज्य करते थे। कृष्ण वासुदेव के पुत्र और रानी जाम्बवती देवी के पात्मज शाम्ब नाम के कुमार थे जो सर्वांग सुन्दर थे। उन शाम्ब कुमार की भार्या थी। अत्यन्त सुन्दर एवं कोमलांगी थी। एक समय अरिष्टनेमि वहां पधारे। कृष्ण वासुदेव उनके दर्शनार्थ गये। मूलश्री देवी भी पद्मावती के समान प्रभु के दर्शनार्थ गई। विशेष में बोली-“हे देवानुप्रिय ! कृष्ण वासुदेव से पूछती हूँ (पूछकर दीक्षित हुई) यावत् सिद्ध हो गई। ___ मूलश्री के ही समान मूलदत्ता का भी सारा वृत्तान्त जानना चाहिये। (यह शाम्ब कुमार की दूसरी रानी थी)। श्री नाम 1. वर्ग 5, सूत्र 4-6. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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