________________ सम्पादकीय परम उपकारी परमात्मा महावीर को शत शत वन्दन / जिनके पावन स्पर्शमात्र से साधक प्रात्मा के कोटि कोटि जन्म के बन्धन टूट गये, जो अनेकों साधक आत्मानों के संसार का अन्त कर अनन्त सिद्धारमानों की परमार्थ ज्योति में ज्योतिर्मय बनाने का सफल प्रयास कर मुक्ति का अमर वरदान बन गये और साथ ही संसार के अन्य प्रात्माओं की सिद्धि हेतु उनकी उलझन भरी व्यथाओं को दूर कर अपूर्व गौरव गाथाओं का प्रापदान बन गये। परंपरा-प्राप्त इस अनुदान का अनुपान करवा के पावन बनानेवाला यह अंतगडदशांग सूत्र द्वादशांगी में आठवां अंग सूत्र है। नामकरण अन्तकृतः प्रस्तुत अंग का नाम 'अन्तकृत दिशा+अंग+सूत्र है, क्योंकि प्रस्तुत ग्रन्थ में उन नब्वे महापुरुषों का जीवनवृत्त संगृहीत किया गया है जिन्होंने संयम-साधना एवं तप-साधना द्वारा आठ प्रकार के कर्मों पर विजय प्राप्त करके एवं चौरासी लाख जीव-योनियों में ग्रावागमन से मुक्ति पाकर जीवन के अन्तिम क्षणों में मोक्षपद की प्राप्ति की। इस प्रकार जीवन-मरण के चक्र का अन्त कर देने वाले महापुरुषों के जीवनवृत्त के वर्णन को ही प्रधानता देने के कारण इस शास्त्र के नाम का प्रथम अवयव 'अन्तकृत" है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org