________________ 62] [अन्तकृद्दशा श्रीजंबू स्वामी ने सुधर्मा स्वामी से निवेदन किया-"भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने आठवें अंग अंतकृत्दशा के तीसरे वर्ग का जो वर्णन किया वह सुना / अंतगडदशा के चौथे वर्ग के हे पूज्य ! श्रमण भगवान् ने क्या भाव दर्शाये हैं, यह भी मुझे बताने की कृपा करें।" सुधर्मा स्वामी ने जंबू स्वामी से कहा-'हे जंबू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने अंतगडदशा के चौथे वर्ग में दश अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं (1) जालि कुमार, (2) मयालि कुमार, (3) उवयालि कुमार, (4) पुरुषसेन कुमार (5) वारिषेण कुमार, (6) प्रद्युम्न कुमार, (7) शाम्ब कुमार (8) अनिरुद्ध कुमार, (9) सत्यनेमि कुमार और (10) दृढनेमि कुमार / जंबू स्वामी ने कहा--भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने चौथे वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, तो प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने क्या अर्थ बताया है।' जालि प्रभृति सुधर्मा स्वामी ने कहा--हे जंबू ! उस काल और उस समय में द्वारका नामकी नगरी थी, जिसका वर्णन प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन में किया जा चुका है। श्रीकृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य कर रहे थे। उस द्वारका नगरी में महाराज 'वसुदेव' और रानी 'धारिणी' निवास करते थे। यहाँ राजा और रानी का वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार जान लेना चाहिए। जालिकुमार का वर्णन गौतम कुमार के समान जानना / विशेष यह कि जालिकुमार ने युवावस्था प्राप्तकर पचास कन्याओं से विवाह किया तथा पचास-पचास वस्तुओं का दहेज मिला / दीक्षित होकर जालि मुनि ने बारह अंगों का ज्ञान प्राप्त किया, सोलह वर्ष दीक्षापर्याय का पालन किया, शेष सब गौतम कुमार की तरह यावत् शत्रुजय पर्वत पर जाकर सिद्ध हुए। . इसी प्रकार मयालिकुमार, उवयालि कुमार, पुरुषसेन और वारिषेण का वर्णन जानना चाहिये। इसी प्रकार प्रद्युम्न कुमार का वर्णन भी जानना चाहिये। विशेष--कृष्ण उनके पिता और रुक्मिणी देवी माता थी। इसी प्रकार साम्ब कुमार भी; विशेष-उनकी माता का नाम जाम्बवती था / ये दोनों श्रीकृष्ण के पुत्र थे। इसी प्रकार अनिरुद्ध कुमार का भी वर्णन है। विशेष यह है कि प्रद्युम्न पिता और वैदर्भी उसकी माता थी। __इसी प्रकार सत्यनेमि कुमार का वर्णन है। विशेष, समुद्रविजय पिता और शिवा देवी माता थी। ___ इसी प्रकार दृढनेमि कुमार का भी वर्णन समझना / ये सभी अध्ययन एक समान हैं। सुधर्मा स्वामी ने कहा-इस प्रकार हे जंबू ! दश अध्ययनों वाले इस चौथे वर्ग का श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त प्रभु ने यह अर्थ कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org