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________________ प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द] कूटलेखकरण--झूठे लेख या दस्तावेज लिखना, झूठे हस्ताक्षर करना आदि कूटलेखकरण में आते हैं। ऐसा करना अतिचार तभी है, यदि उपासक असावधानी से, अज्ञानवश या अनिच्छापूर्वक ऐसा करता है / यदि कोई जान-बूझ कर दूसरे को धोखा देने के लिए जाली दस्तावेज तैयार करे, जाली मोहर या छाप लगाए, जाली हस्ताक्षर करे तो वह अनाचार में चला जाता है और व्रत खंडित हो जाता है। अस्तेय-वत के अतिचार 47. तयाणंतरं च णं थलगस्स अदिग्णादाणवेरमणस्स पंच अइयारा जाणियन्वा न समायरियव्वा / तं जहा-तेणाहडे, तक्करप्पओगे, विरुद्ध-रज्जाइक्कमे, कूडतुल्लकूडमाणे, तप्पडिरूवगववहारे। तदनन्तर स्थूल अदत्तादानविरमण-व्रत के पाँच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए / वे इस प्रकार हैं स्तेनाहृत, तस्करप्रयोग, विरुद्धराज्यातिक्रम, कूटतुलाकूटमान, तत्प्रतिरूपकव्यवहार / विवेचन __ स्तेनाहृत--स्तेन का अर्थ चोर होता है, प्राहृत का अर्थ उस द्वारा चुरा कर लाई हुई वस्तु है / ऐसी वस्तु को लेना, खरीदना, रखना। तस्करप्रयोग-अपने व्यावसायिक कार्यों में चोरों का उपयोग करना। विरुद्धराज्यातिक्रम—विरोधवश अपने देश से इतर देशों के शासकों द्वारा प्रवेश निषेध की निर्धारित सीमा लांघना, दूसरे राज्यों में प्रवेश करना / इसका एक दूसरा अर्थ भी किया जाता है, जिसके अनुसार राज्य-विरुद्ध कार्य करना इसके अन्तर्गत आता है। कूटतुलाकूटमान--तोलने और मापने में झूठ का प्रयोग अर्थात् देने में कम तोलना या मापना, लेने में ज्यादा तोलना या मापना। तत्प्रतिरूपकव्यवहार-इसका शब्दार्थ कूट-तुला-कूटमान जैसा व्यवहार है, अर्थात् व्यापार में अनैतिकता व असत्याचरण करना-जैसे अच्छी वस्तु में घटिया वस्तु मिला देना, नकली को असली बतलाना आदि / स्वदारसन्तोष व्रत के अतिचार 48. तयाणंतरं च णं सदार-संतोसिए पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा / तं जहा-इत्तरियपरिग्गहियागमणे, अपरिग्गहियागमणे, अणंगकीडा, परविवाहकरणे, कामभोगतिव्वाभिलासे। तदनन्तर स्वदारसंतोष-व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए / वे अतिचार इस प्रकार हैं--- ___ इत्वरिकपरिगृहीतागमन, अपरिगृहीतागमन, अनंगक्रीडा, पर-विवाहकरण तथा कामभोगतीवाभिलाष / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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