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________________ ; प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द] [41 काट डालने से वह सहज ही छविशून्य हो जाता है / क्रोधावेश में किसी का अंग काट डालना इस अतिचार में शामिल है / मनोरंजन के लिए कुत्ते आदि पालतू पशुत्रों की पूछ, कान आदि काट देना भी इस अतिचार में आता है। अतिभार-पशु, दास आदि पर उनकी ताकत से ज्यादा बोझ लादना अतिभार में आता है। आज की भाषा में नौकर, मजदूर, अधिकृत कर्मचारी से इतना ज्यादा काम लेना, जो उसकी शक्ति से बाहर हो, अतिभार ही है / भक्त-पान-व्यवच्छेद- इसका अर्थ खान-पान में बाधा या व्यवधान डालना है। जैसे अपने आश्रित पशु को यथेष्ट चारा एवं पानी समय पर नहीं देना, भूखा-प्यासा रखना / यही बात दासदासियों पर भी लागू होती है। उनकी भी खान-पान की व्यवस्था में व्यवधान या विच्छेद पैदा करना, इस अतिचार में शामिल है। आज के युग की भाषा में अपने नौकरों तथा कर्मचारियों आदि को समय पर वेतन न देना, वेतन में अनुचित रूप में कटौती कर देना, किसी की आजीविका में बाधा पैदा कर देना, सेवकों तथा आश्रितों से खूब काम लेना, पर उसके अनुपात में उचित व पर्याप्त भोजन न देना, वेतन न देना, इस अतिचार में शामिल है / ऐसा करना बुरा कार्य है, जनता के जीवन के साथ खिलवाड़ है। इन अतिचारों में पशुओं की विशेष चर्चा पाने से स्पष्ट है कि तब पशु-पालन एक गृहस्थ के जीवन का आवश्यक भाग था। घर, खेती तथा व्यापार के कार्यों में पशु का विशेष उपयोग था। आज सामाजिक स्थितियाँ बदल गई हैं। निर्दयता, क्रूरता, अत्याचार आदि अनेक नये रूपों में उभरे हैं। इसलिए धर्मोपासक को अपनी दैनन्दिन जीवन-चर्या को बारीकी से देखते हुए इन अतिचारों के मूल भाव को ग्रहण करना चाहिए और निर्दयतापूर्ण कार्यों का वर्जन करना चाहिए। सत्यव्रत के अतिचार 46. तयाणंतरं च णं थूलगस्स मुसावायवेरमणस्स पंच अइयारा जाणियव्या न समायरियव्वा / तं जहा–सहसा-अब्भक्खाणे, रहसा-अभक्खाणे, सदारमंतभेए, मोसोवएसे, कूडलेहकरणे। तत्पश्चात् स्थूल मृषावादविरमण व्रत के पांच अतिचारों को जानना, चाहिए, उनका आचरण - नहीं करना चाहिए / वे इस प्रकार हैं सहसा-अभ्याख्यान, रहस्य-अभ्याख्यान, स्वदारमंत्रभेद, मृषोपदेश, कूटलेखकरण। . विवेचन सहसा-अभ्याख्यान--किसी पर एकाएक बिना सोचे-समझे झूठा आरोप लगा देना / रहस्य-अभ्याख्यान-किसी के रहस्य-गोपनीय बात को प्रकट कर देना / स्वदारमंत्रभेद-अपनी पत्नी की गुप्त बात को बाहर प्रकट कर देना। मृषोपदेश—किसी को गलत राय या असत्यमूलक उपदेश देना / कूटलेखकरण-खोटा या झूठा लेख लिखना, दूसरे को ठगने या धोखा देने के लिए झूठे, जाली कागजात तैयार करना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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