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________________ प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द [31 चरकसंहिता में वाततपिक एवं कुटीप्रावेशिक के रूप में काय-कल्प चिकित्सा का उल्लेख है / कुटीप्रावेशिक को अधिक प्रभावशाली बतलाते हुए वहाँ विस्तार से वर्णन है।' इस चिकित्सा में शोधन के लिए हरीतकी तथा पोषण के लिए प्रांवले का विशेष रूप से उपयोग होता है। इन्हें रसायन कहा गया है / आचार्य चरक ने रसायन के सेवन से दीर्घ आयु, स्मृतिबुद्धि, तारुण्य-जवानी, कान्ति, वर्ण-प्रोजमय दैहिक आभा, प्रशस्त स्वर, शरीर-बल, इन्द्रिय-बल आदि प्राप्त होने का उल्लेख किया है / __ आंवले से च्यवनप्राश, ब्राह्मरसायन, आमलकरसायन आदि पौष्टिक औषधियों के रूप में अनेक अवलेह तैयार किए जाते हैं / अस्तु / अानन्द यदि फलों के सन्दर्भ में अपवाद रखता तो वह बिहार का निवासी था, बहुत सम्भव है, फलों में आम का अपवाद रखता, जैसे खाद्यान्नों में बासमती चावलों में उत्तम कलम जाति के चावल रखे / आम तो फलों का राजा माना जाता है और बिहार में सर्वोत्तम कोटि का तथा अनेक जातियों का होता है / अथवा उस प्रदेश में तो और भी उत्तम प्रकार के फल होते हैं, उनमें से और कोई रखता / वस्तुत: जैसा ऊपर कहा गया है, आनन्द ने आंवले का खाने के फल की दृष्टि से अपवाद नहीं रखा, मस्तक, नेत्र, बाल आदि की शुद्धि के लिए ही इसे स्वीकार किया। यह वर्णन भी ऐसे ही सन्दर्भ में है। इससे पहले के तेईसवें सत्र में आनन्द ने हरी मलैठी के अतिरिक्त सब प्रकार के दतौनों का परित्याग किया. इससे प्रागे पच्चीसवें सत्र में शतपाक तथा सहस्रपाक तैलों के अतिरिक्त मालिश के सभी तैलों का सेवन न करने का नियम किया। उसके बाद छब्बीसवें सूत्र में सुगन्धित गन्धाटक के सिवाय सभी उबटनों का परित्याग किया। यहाँ खाने के फल का प्रसंग ही संगत नहीं है। यह तो सारा सन्दर्भ दतौन, स्नान, मालिश, उबटन आदि देह-शुद्धि से सम्बद्ध कार्यों से जुड़ा है / __ अब एक प्रश्न उठता है, क्या आनन्द ने खाने के किसी भी फल का अपवाद नहीं रखा ? हो सकता है, उसने अपवाद नहीं रखा हो / सामान्यतः सचित्त रूप में सभी फलों को अस्वीकार्य माना हो। इस सम्बन्ध में डा. रुडोल्फ हार्नले ने भी चर्चा की है। उन्होंने भी इसी तरह का संकेत दिया है। 25 तयाणंतरं च णं अन्भंगणविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ सयपागसहस्सपाहि तेल्लेहि अवसेसं अब्भंगणविहिं पच्चक्खामि / उसके बाद उसने अभ्यंगन-विधि का परिमाण किया 1. चरकसंहिता-चिकित्सास्थान 1 / 16-27 / / 2. दीर्घमायुः स्मृति मेधामारोग्यं तरुणं वयः / प्रभावर्णस्वरौदार्य देहेन्द्रियबलं परम् // वासिद्धि प्रणति कान्ति लभते ना रसायनात् / लाभोपायो हि शस्तानां रसादीनां रसायनम् / / चरकसंहिता-चिकित्सास्थान 1 / 7-8 / / 3. Uvasagadasao, Lecture I Pages 15, 16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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