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________________ प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द] [27 पाणाइवायं पच्चक्खाइ, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा। तब अानन्द गाथापति ने श्रमण भगवान् महावीर के पास प्रथम या मुख्य स्थूल प्राणातिपात - स्थूल हिंसा का प्रत्याख्यान परित्याग किया, इन शब्दों में---- मैं जीवन पर्यन्त दो करण-कृत व कारित अर्थात् करना, कराना तथा तीन योग-मन, वचन एवं काया से स्थूल हिंसा का परित्याग करता हूँ, अर्थात् मैं मन से, वचन से तथा शरीर से स्थूल हिंसा न करूगा और न कराऊंगा। सत्य व्रत 14. तयाणंतरं च णं थूलगं मुसावायं पच्चक्खाइ, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा। तदनन्तर उसने स्थूल मृषावाद-असत्य का परित्याग किया, इन शब्दों में मैं जीवन भर के लिए दो करण और तीन योग से स्थूल मृषावाद का परित्याग करता हूँ अर्थात् मैं मन से, वचन से तथा शरीर से न स्थूल असत्य का प्रयोग करूंगा और न कराऊंगा। अस्तेय व्रत 15. तयाणंतरं च णं थूलग अदिग्णादाणं पच्चक्खाइ, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा। उसके बाद उसने स्थूल अदत्तादान-चोरी का परित्याग किया। इन शब्दों में मैं जीवन भर के लिए दो करण और तीन योग से स्थूल चोरी का परित्याग करता हूं अर्थात् मैं मन से, वचन से तथा शरीर से न स्थूल चोरी करूगा न कराऊंगा। स्वदार-सन्तोष 16. तयाणंतरं च णं सवार-संतोसिए परिमाणं करेइ, नन्नस्थ एक्काए सिवनंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खामि / फिर उसने स्वदारसन्तोष व्रत के अन्तर्गत मैथुन का परिमाण किया / इन शब्दों में अपनी एकमात्र पत्नी शिवनन्दा के अतिरिक्त अवशेष समग्र मैथुनविधि का परित्याग करता हूं। इच्छा-परिमाण 17. तयाणंतरं च णं इच्छा-विहि-परिमाणं करेमाणे हिरण्णसुवग्णविहिपरिमाणं करेइ, नन्नत्थ चहिं हिरण्णकोडोहिं निहाणपउत्ताहि, चहिं बुट्टिपउत्ताहि, चहि पवित्यर-पउत्ताहि, अवसेसं सव्वं हिरण्णसुबणविहिं पच्चक्खामि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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