________________ आगम-वाङमय के अनुरागी, अध्यात्म व संयम में अभिरुचिशील, सहस्राब्दियों पूर्व के भारतीय जीवन के जिज्ञासु सुधी जन यदि प्रस्तुत ग्रन्थ से कुछ भी लाभान्वित हुए तो मैं अपना श्रम सार्थक मानूगा। कैवल्यधाम, सरदारशहर [राजस्थान] दिनांक 9-4-80 -डॉ. छगनलाल शास्त्री एम० ए० [हिन्दी संस्कृत, प्राकृत तथा जैनोलोजी] पी-एच० डी०, काव्यतीर्थ, विद्यामहोदधि भू० पू० प्रवक्ता-~-इन्स्टीट्यूट ऑफ प्राकृत, जैनोलोजी एण्ड अहिंसा, वैशाली [बिहार [33] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org