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________________ ..बत्तीसों आगमों के संपादन, अनुवाद एवं प्रकाशन का दूसरा प्रयास लगभग, उसके दो दशक बाद जैन शास्त्राचार्य पूज्य श्री घासीलाल जी महाराज द्वारा करांची से चालू हुआ। वर्षों के परिश्रम से वह अहमदाबाद में सम्पन्न हुआ / उन्होंने स्वरचित संस्कृत टीका तथा हिन्दी एवं गुजराती अनुवाद के साथ सम्पादन किया। वे भी आज सम्पूर्ण रूप में प्राप्त नहीं हैं। फुटकर रूप में आगमप्रकाशन कार्य सामान्यतः गतिशील रहा / वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के प्रथम आचार्य आगम-वाङमय के महान् अध्येता, प्रबुद्ध मनीषी पूज्य आत्माराम जी महाराज द्वारा कतिपय आगमों का संस्कृत-छाया, हिन्दी अनुवाद तथा व्याख्या के साथ सम्पादन किया गया, जो वास्तव में बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ / आज वे सब आगम भी प्राप्त नहीं हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ की ओर से भी आगमप्रकाशन का कार्य चल रहा है। विस्तृत विवेचन, टिप्पणी आदि के साथ कतिपय आगम प्रकाश में आये हैं। सभी प्रयास जो हुए हैं, हो रहे हैं, अभिनन्दनीय हैं। प्राज को आवश्यकता हिन्दी जगत् में वर्षों से आज की प्रांजल भाषा तथा अधुनातन शैली में हिन्दी अनुवाद के साथ आगमप्रकाशन की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी। देश का हिन्दी-भाषी क्षेत्र बहुत विशाल है / हिन्दीभाषा में कोई साहित्य देने का अर्थ है कोटि कोटि मानवों तक उसे पहुँचाना / जैन आगम केवल विद्वद्भोग्य नहीं हैं, जन-जन के लिए उनकी महनीय उपयोगिता है। आज के समस्यासंकुल युग में, जब मानव को शान्ति का मार्ग चाहिए, वे और भी उपयोगी हैं / जन-जन के लिए वे उपयोगी हो सकें, इस हेतु मूलग्राही भावबोधक अनुवाद और जहाँ अपेक्षित हो, सरल रूप में संक्षिप्त विवेचन के साथ आगमों का प्रकाशन हिन्दी-जगत् के लिए आज की अनुपेक्षणीय आवश्यकता है। जैन जगत् के सुप्रसिद्ध विद्वान् एवं लेखक, पण्डितरत्न, वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमणसंघ के युवाचार्य पूज्य श्री मधुकर मुनिजी महाराज के मन में बहुत समय से यह बात थी। उन्हीं की आध्यात्मिक प्रेरणा की यह फल-निष्पत्ति है कि ब्यावर [राजस्थान] में आगम प्रकाशन समिति का परिगठन हुआ, जिसने यह स्तुत्य कार्य सहर्ष, सोत्साह स्वीकार कर लिया / अागम-संपादन, अनुवाद त्वरापूर्वक गतिशील है / सहभागित्व पिछले कुछ वर्षों से श्रद्धेय युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी महाराज से मेरा श्रद्धा एवं सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध है। उनके निश्छल, निर्मल, सरल व्यक्तित्व की मेरे मन पर एक छाप है। वे वरिष्ठ विद्वान् तो हैं ही, साथ ही साथ विद्वानों एवं गुणियों का बड़ा आदर करते हैं। मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूँ कि मुझे उनका हार्दिक अनुग्रह एवं सात्विक स्नेह प्राप्त है / आगमों के संपादन एवं अनुवादकार्य में पूज्य युवाचार्य श्री ने मुझे भी स्मरण किया। पिछले तीस वर्षों से भारतीय विद्या (Indology) और विशेषतः प्राकृत तथा जैन विधा (Jainology) के क्षेत्र में अध्ययन, अनुसन्धान, लेखन, अध्यापन आदि के सन्दर्भ में कार्यरत रहा हूँ। यह मेरी आन्तरिक अभिरुचि का विषय है, व्यवसाय नहीं। अतः मुझे प्रसन्नता का अनुभव हुआ / मेड़ता निवासी मेरे अनन्य मित्र युवा साधक एवं साहित्यसेवी श्रीमान् जतनराजजी मेहता, जो आगम प्रकाशन समिति के महामन्त्री मनोनीत [ 30 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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