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________________ नौवां अध्ययन सार : संक्षेप श्रावस्ती नगरी में नन्दिनीपिता नामक एक समृद्धिशाली गाथापति था। उसकी सम्पत्ति बारह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं में थी, जिनका तीसरा भाग सुरक्षित पूजी के रूप में अलग रखा हुआ था, उतना ही व्यापार में लगा था तथा उतना ही घर के वैभव साज-सामान आदि में लगा हुआ था। उसके दस-दस हजार गायों के चार गोकुल थे। उसकी पत्नी का नाम अश्विनी था / नन्दिनीपिता एक सम्पन्न, सुखी गृहस्थ का जीवन बिता रहा था। एक सुन्दर प्रसंग बना। भगवान् महावीर श्रावस्ती में पधारे। श्रद्धालु मानव-समुदाय दर्शन के लिए उमड़ पड़ा। नन्दिनीपिता भी गया। भगवान् की धर्म-देशना सुनी। अन्तःप्रेरित हुआ। गाथापति आनन्द की तरह उसने भी श्रावक-धर्म स्वीकार किया। नन्दिनीपिता अपने व्रतमय जीवन को उत्तरोत्तर विकसित करता गया। यों चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। उसका मन धर्म में रमता गया। उसने पारिवारिक तथा सामाजिक दायित्वों से मुक्ति लेना उचित समझा। अपने स्थान पर ज्येष्ठ पुत्र को मनोनीत किया। स्वयं धर्म की आराधना में जुट गया। शुभ संयोग था, उसकी उपासना में किसी प्रकार का उपसर्ग या विघ्न नहीं हुआ। उसने बीस वर्ष तक सम्यक् रूप में श्रावक-धर्म का पालन किया। यों प्रानन्द की तरह साधनामय जीवन जीते हुए अन्त में समाधि-मरण प्राप्त कर वह सोधर्मकल्प में अरुणगव विमान में देव रूप में उत्पन्न हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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