SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सातवां अध्ययन : सकडालपुत्र] [167 सहयोगिनी पत्नी अग्निमित्रा को घर से ले कर मेरे आगे मार देना चाहता है, मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं इस पुरुष को पकड़ लू। यों विचार कर वह दौड़ा। आगे की घटना चुलनीपिता की तरह ही समझनी चाहिए / सकडालपुत्र की पत्नी अग्निमित्रा ने कोलाहल सुना / शेष घटना चुलनीपिता की तरह ही कथनीय है। केवल इतना भेद है, सकडालपुत्र अरुणभूत विमान में उत्पन्न हुआ। (वहां उसकी आयु चार पल्योपम की बतलाई गई।) महाविदेह क्षेत्र में वह सिद्ध-मुक्त होगा। "निक्षेप"" सातवें अंग उपासकदशा का सातवां अध्ययन समाप्त / / 1. निगमन आर्य सुधर्मा बोले-जम्ब ! सिद्धि प्राप्त भगव 1. निगमन-आर्य सुधर्मा बोले- जम्बु ! सिद्धि प्राप्त भगवान महावीर ने उपासकदशा के सातवें अध्ययन का यही अर्थ-भाव कहा था, जो मैंने तुम्हें बतलाया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy