________________ 156] [उपासकदशांगसूत्र (अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए / ) अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्त-सिक्खावइयं दुवालसविहं गिहि-धम्म पडिवज्जिस्सामि / अहासुह, देवाणुप्पिया! मा पडिबधं करेह / सकडालपुत्र की पत्नी अग्निमित्रा श्रमण भगवान् महावीर से धर्म का श्रवण कर हर्षित एवं परितुष्ट हुई / उसने भगवान् को वंदन-नमस्कार किया। वंदन-नमस्कार कर वह बोली-भगवन् ! मझे निर्ग्रन्थ-प्रवचन में श्रद्धा है, ( विश्वास है, निर्ग्रन्थ-प्रवचन मुझे रुचिकर है, भगवन् ! यह ऐसा हा है, यह तथ्य है, सत्य है, इच्छित है, प्रतीच्छित है, इच्छित-प्रतीच्छित है,) जैसा आपने प्रतिपादित किया, वैसा ही है। देवानुप्रिय ! जिस प्रकार आपके पास बहुत से उग्र--प्रारक्षक-अधिकारी, भोग—राजा के मन्त्री-मण्डल के सदस्य (राजन्य-राजा के परामर्शक मण्डल के सदस्य, क्षत्रियक्षत्रिय वंश के राज-कर्मचारी, ब्राह्मण, सुभट, योद्धा युद्धोपजीवी सैनिक, प्रशास्ता-प्रशासनअधिकारी, मल्लकि—मल्ल-गणराज्य के सदस्य, लिच्छिवि-लिच्छिवि गणराज्य के सदस्य तथा अन्य अनेक राजा, ऐश्वर्यशाली, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, धनी, श्रेष्ठी सेनापति एवं सार्थवाह) आदि मुडित होकर, गृहवास का परित्याग कर अनगार या श्रमण के रूप में प्रवजित हुए, मैं उस प्रकार मुडित होकर (गृहवास का परित्याग कर अनगार-धर्म में) प्रवजित होने में असमर्थ हूं। इसलिए आपके पास पांच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार का श्रावक-धर्म ग्रहण करना चाहती हूं। ____ अग्निमित्रा के यों कहने पर भगवान् ने कहा—देवानुप्रिये ! जिससे तुमको सुख हो, वैसा करो, विलम्ब मत करो। विवेचन इस सूत्र में आए मल्लकि और लिच्छिवि नाम भारतीय इतिहास के एक बड़े महत्त्वपूर्ण समय की ओर संकेत करते हैं। वैसे आज बोलचाल में यूरोप को, विशेषत: इंग्लैण्ड को प्रजातन्त्र का जन्मस्थान (mother of democracy) कह दिया जाता है, पर भारतवर्ष में प्रजातन्त्रात्मक शासनप्रणाली का सफल प्रयोग सहस्राब्दियों पूर्व हो चुका था / भगवान् महावीर एवं बुद्ध के समय आज के पूर्वी उत्तरप्रदेश तथा बिहार में अनेक ऐसे राज्य थे, जहाँ उस समय की अपनी एक विशेष गणतन्त्रात्मक प्रणाली से जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शासन करते थे। शब्द उनके लिए भी राजा था, पर वह वंश-क्रमागत राज्य के स्वामी का द्योतक नहीं था। भगवान् महावीर के पिता सिद्धार्थ तथा बुद्ध के पिता शुद्धोधन दोनों के लिए राजा शब्द आया है, पर वे संघ-राज्यों के निर्वाचित राजा या शासन-परिषद् के सदस्य थे, जिन पर एक क्षेत्र-विशेष के शासन का उत्तरदायित्व था। प्राचीन पाली तथा प्राकृत ग्रन्थों में इन संघ-राज्यों का अनेक स्थानों पर वर्णन आया है। कुछ संघ मिल कर अपना एक वृहत् संघ भी बना लेते थे। ऐसे संघों में वज्जिसंघ प्रसिद्ध था, जिसमें मुख्यतः लिच्छिवि, नाय (ज्ञातृक) तथा वज्जि आदि सम्मिलित थे। उस समय के संघ-राज्यों में कपिलवस्तु के शाक्य, पावा तथा कुशीनारा के मल्ल, पिप्पलिवन के मौर्य, मिथिला के विदेह, वैशाली लिच्छिवि तथा नाय बहुत प्रसिद्ध थे। यहां प्रयुक्त मल्लकि शब्द मल्ल संघ-राज्य से सम्बद्ध जनों के लिए तथा लिच्छिवि शब्द लिच्छिवि संघ-राज्य से सम्बद्ध जनों के लिए है। भगवान् महावीर के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org