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________________ सातवां अध्ययन : सकशालपुत्र] [153 ___ यदि तुम मानते हो कि वास्तव में कोई पुरुष तुम्हारे हवा लगे हुए या धूप में सुखाए मिट्टी के बर्तनों को (चुराता है या बिखेरता है या उनमें छेद करता है या उन्हें फोड़ता है या) उठाकर बाहर डाल देता है अथवा तुम्हारी पत्नी अग्निमित्रा के साथ विपुल भोग भोगता है, तुम उस पुरुष को फटकारते हो (या पीटते हो या बांधते हो या रौंदते हो या तर्जित करते हो या थप्पड़-घूसे मारते हो या उसका धन छीन लेते हो या कठोर वचनों से उसकी भर्त्सना करते हो) या असमय में ही उसके प्राण ले लेते हो, तब तुम प्रयत्न, पुरुषार्थ आदि के न होने की तथा होने वाले सब कार्यों के नियत होने की जो बात कहते हो, वह असत्य है / बोधिलाभ 201. एत्थ णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए संबुद्धे / इससे आजीविकोपासक सकडालपुत्र को संबोध प्राप्त हुआ / 202. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-इच्छामि णं भंते ! तुम्भं अंतिए धम्मं निसामेत्तए / सकडालपुत्र ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और उनसे कहाभगवन् ! मैं आपसे धर्म सुनना चाहता हूं। 203. तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तोसे य जाव' धम्म परिकहेइ। तब श्रमण भगवान् महावीर ने आजीविकोपासक सकडालपुत्र को तथा उपस्थित परिषद् को धर्मोपदेश दिया। सकडालपुत्र एवं अग्निमित्रा द्वारा बत-ग्रहण 204. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणस्स भगवओ महाबीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा, निसम्म हट्ठ-तुट्ठ जाव' हियए जहा आणंदो तहा गिहि-धम्म पडिवज्जइ। नवरं एगा हिरण-कोडी निहाण-पउत्ता, एगा हिरण्णकोडी वृड्डि-पउत्ता, एगा हिरण्ण-कोडी पवित्थर-पउत्ता, एगे दए, दस गो-साहस्सिएणं वएणं जाव समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता जेणेव पोलासपुरे नयरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोलासपुरं नयरं मज्झमज्ञणं जेणेव सए गिहे, जेणेव अग्गिमिता भारिया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, अग्गिमित्तं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे जाव' समोसढे, तं गच्छाहि णं तुमं, समणं भगवं महावीरं वंदाहि जाव पज्जुवासाहि, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिबज्जाहि। 1. देखें सूत्र-संख्या 11 2. देखें सूत्र-संख्या 12 3. देखें सूत्र-संख्या 9 4. देखें सूत्र-संख्या 58 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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