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________________ 148] [उपासकदशांगसूत्र भारतीय समाज-व्यवस्था के नियामक मनु ने ब्राह्मण का अत्यन्त उत्तम चरित्रशील पुरुष के रूप में उल्लेख किया है तथा उसके चरित्र से शिक्षा लेने की प्रेरणा दी है।' इन विवेचनों को देखते समझा जा सकता है पुरातन भारतीय वर्णव्यवस्था का आधार गुण, कर्म था, आज की भांति वंशपरम्परा नहीं / सकडालपुत्र की कल्पना 188. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तेणं देवेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झस्थिए ४--चितिए, पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पन्ने एवं खलु ममं धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते, से णं महामाहणे उप्पन्न-णाण-दसणधरे जाव तच्च-कम्म-संपया-संपउत्ते, से णं कल्लं इहं हव्वमागच्छिस्सइ / तए णं तं अहं वंदिस्सामि जाव (सक्कारेस्सामि, सम्मास्सामि, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं) पज्जुवासिस्सामि पाडिहारिएणं जाव (पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं) उवनिमंतिस्सामि। उस देव द्वारा यों कहे जाने पर आजीविकोपासक सकडालपुत्र के मन में ऐसा विचार पाया, मनोरथ, चिन्तन और संकल्प उठा-मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, महामाहन, अप्रतिम ज्ञान-दर्शन के धारक, (अतीत, वर्तमान एवं भविष्य-तीनों काल के ज्ञाता, अर्हत्, जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, तीनों लोक अत्यन्त हर्षपूर्वक जिनके दर्शन की उत्सुकता लिए रहते हैं, जिनकी सेवा एवं उपासना की वांछा लिए रहते हैं, देव, मनुष्य तथा असुर-सभी द्वारा अर्चनीय, वन्दनीय, सत्करणीय, सम्माननीय, कल्याणमय, मंगलमय, देवस्वरूप, ज्ञानस्वरूप, पर्युपासनीय,) सत्कर्म-सम्पत्तियुक्त मंखलिपुत्र गोशालक कल यहां पधारेंगे / तब मैं उनकी वंदना, (सत्कार एवं सम्मान करुंगा। वे कल्याणमय, मंगलमय, देवस्वरूप तथा ज्ञानस्वरूप हैं) पर्युपासना करुंगा तथा प्रातिहारिक (पीठ, फलक, संस्तारक) हेतु आमंत्रित करुगा। भगवान् महावीर का सान्निध्य 189. तए णं कल्लं जाव जलंते समणे भगवं महावीरे जाव' समोसरिए / परिसा निग्गया जाव' पज्जुवासइ। तत्पश्चात् अगले दिन प्रातःकाल भगवान् महावीर पधारे। परिषद् जुड़ी, भगवान् की पर्युपासना की। 190. तए णं से सददालपुत्ते आजीविओवासए इमीसे कहाए लद्धठे समाणे-एवं खलु समणे भगवं महावीरे जाव (जेणेव पोलासपुरे नयरे, जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छ, 1. मनुस्मृति 2.20 2. देखो सूत्र-संख्या 187 3. देखें सूत्र-संख्या 66 4. देखें सूत्र-संख्या 9 5. देखें सूत्र-संख्या 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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