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________________ 146] [उपासकवशांगसूत्र __जो क्रोध, हास्य, लोभ तथा भय से असत्य भाषण नहीं करता, हम उसी को ब्राह्मण कहते हैं। जो सचित्त या अचित्त, थोड़ी या बहुत कोई भी वस्तु बिना दी हुई नहीं लेता, ब्राह्मण वही है। ___ जो मन, वचन एवं शरीर द्वारा देव, मनुष्य तथा तिर्यंच सम्बन्धी मैथुन का सेवन नहीं करता, वास्तव में वही ब्राह्मण है। कमल यद्यपि जल में उत्पन्न होता है, पर उसमें लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार जो काम-भोगों से अलिप्त रहता है, वही ब्राह्मण है। जो अलोलुप, भिक्षा पर निर्वाह करने वाला, गृह-त्यागी तथा परिग्रह-त्यागी होता है, गृहस्थों के साथ आसक्ति नहीं रखता, वही ब्राह्मण है। जो जातीय जनों और बन्धुजनों का पूर्व संयोग छोड़कर त्यागमय जीवन अपना लेता है, लौटकर फिर भोगों में प्रासक्त नहीं होता, हमारी दृष्टि में वही ब्राह्मण है।' ___ यहां ब्राह्मण के व्यक्तित्व का जो शब्द-चित्र उपस्थित किया गया है, उससे स्पष्ट है, जयघोष मुनि के शब्दों में महान त्यागी, आध्यात्मिक साधना के पथ पर सतत गतिशील, निरपवाद रूप में व्रतों का परिपालक साधक ही वस्तुतः ब्राह्मण होता है। बौद्धों के धम्मपद का अन्तिम वर्ग या अध्याय ब्राह्मणवग्ग है, जिसमें ब्राह्मण के स्वरूप, गुण, चरित्र आदि का वर्णन है / वहां कहा गया है "जिसके पार---नेत्र, कान, नासिका, जिह्वा, काया तथा मन, अपार---रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पर्श तथा पारापार-मैं और मेरा-ये सब नहीं हैं, अर्थात् जो एषणाओं और भोगों से ऊंचा उठा हुआ है, निर्भय है, अनासक्त है, वह ब्राह्मण है। ब्राह्मण के लिए यह बात कम श्रेयस्कर नहीं है कि वह अपना मन प्रिय भोगों से हटा लेता है। जहां मन हिंसा से निवृत्त हो जाता है, वहां दुःख स्वयं ही शान्त हो जाता है।। जिसके मन, वचन तथा शरीर से दुष्कृत-अशुभ कर्म या पाप नहीं होते, जो इन तीनों ही स्थानों से संवृत-संयम युक्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं। जो फटे-पुराने चिथड़ों को धारण किए रहता है, कृश है, उग्र तपश्चरण द्वारा जिसकी देह पर नाड़ियां उभर आई हैं, एकाकी वन में ध्यान-निरत रहता है, मेरी दृष्टि में वही ब्राह्मण है। जो सभी संयोजनों-बन्धनों को छिन्न कर डालता है, जो कहीं भी परित्रास---भय नहीं पाता, जो आसक्ति और ममता से अतीत है, मैं उसी को ब्राह्मण कहता हूं। जो आक्रोश-क्रोध या गाली-गलौज, वध एवं बन्धन को, मन को जरा भी विकृत किए विना सह जाता है, क्षमा-बल ही जिसकी बलवान् सेना है, वास्तव में वही ब्राह्मण है। जो क्रोध-रहित, व्रतयुक्त, शीलवान् बहुश्रुत, संयमानुरत तथा अन्तिम शरीरवान् हैशरीर त्याग कर निर्वाणगामी है, वही वास्तव में ब्राह्मण है / 1. उत्तराध्ययन सूत्र 25 / 20-29 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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