________________ चौथा अध्ययन सार : संक्षेप वाराणसी नगरी में सुरादेव नामक गाथापति था। वह बहुत समृद्धिशाली था / छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं उसके निधान में थीं, छह करोड़ व्यापार में तथा छह करोड़ घर के वैभव में / उसकी पत्नी का नाम धत्या था / शुभ संयोगवश एक बार भगवान् महावीर वाराणसी में पधारे---समवसरण हुआ / प्रानन्द की तरह सरादेव ने भी श्रावक-धर्म स्वीकार किया। वह धर्माराधना में उत्तरोत्तर बढ़ता गया / एक दिन की घटना है, सुरादेव पोषधशाला में ब्रह्मचर्य एवं पोषध स्वीकार किए उपासनारत था / आधी रात का समय हुआ था, एक देव उसके सामने प्रकट हुआ। उसके हाथ में तेज तलवार थी। उसने सुरादेव को उपासना से हट जाने के लिए बहुत डराया-धमकाया। न मानने पर उसने उसके तीनों पुत्रों को क्रमशः उसी प्रकार हत्या कर दी, जिस प्रकार चुलनीपिता के कथानक में देव ने उसके पुत्रों को मारा था। हर बार हर पुत्र के शरीर को पांच-पांच मांस-खंडों में काटा, उबलते पानी की कढ़ाही में खौलाया और वह उबलता मांस व रक्त सुरादेव पर छिड़का / पर, सुरादेव की दृढ़ता नहीं टूटी / वह निर्भीकता के साथ अपनी उपासना में लगा रहा। देव ने सोचा, पुत्रों के प्रति रही ममता पर चोट करने से यह विचलित नहीं हो रहा है, इसलिए मुझे अब इसके शरीर की ही दुर्दशा करनी होगी। मनुष्य को शरीर से अधिक प्रिय कुछ भी नहीं होता, यह सोचकर देव ने सुरादेव को अत्यन्त कठोर शब्दों में कहा कि तुम्हारे सामने मैंने तुम्हारे पुत्रों को मार डाला, तुमने परवाह नहीं की। अब देखो, मैं तुम्हारी खुद की कैसी बुरी हालत करता हूं। फिर कहता हूं, तुम व्रतों का त्याग कर दो, नहीं तो मैं तुम्हारे शरीर में एक ही साथ दमा, खांसी, बुखार, जलन, कुक्षि-शूल, भगंदर, बवासीर, अजीर्ण, दृष्टि-रोग, शिरः-शूल, अरुचि, अक्षिवेदना, कर्ण-वेदना, खजली, उदर-रोग और कष्ठ—ये सोलह भयानक बीमारियां पैदा हूं / इन बीमारियों से तुम्हारा शरीर सड़ जायगा, इनकी बेहद पीड़ा से तुम जीर्ण हो जानोगे / __ अपनी आंखों के सामने बेटों की हत्या देख, जो सुरादेव विचलित नहीं हुआ था, अपने पर आने वाले रोगों का नाम सुनते ही उसका मन कांप गया / यह सोचते ही कि मेरा शरीर इन भीषण रोगों से असीम वेदना-पीड़ित होकर जीवित ही मृत जैसा हो जायगा, सहसा उसका धैर्य टूट गया / वैसे रोगाक्रान्त जीवन की विभीषिका ने उसे दहला दिया / उसने सोचा, जो दुष्ट मुझे ऐसा बना देना चाहता है, उसे पकड़ लेना चाहिए। पकड़ने के लिए उसने हाथ फैलाए। वह तो देवमाया का षड्यन्त्र था, कैसे पकड़ में आता ? देव आकाश में लुप्त हो गया / पोषधशाला का जो खंभा सुरादेव के सामने था, उसके हाथों में आ गया / सुरादेव हक्का-बक्का रह गया / वह समझ नहीं सका, यह क्या हुआ ? वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा। सुरादेव की पत्नी धन्या ने जब यह चिल्लाहट सुनी तो वह तुरन्त पोषधशाला में आई और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org