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________________ तीसरा अध्ययन सार : संक्षेप सहस्राब्दियों से वाराणसी भारत की एक समृद्ध और सुप्रसिद्ध नगरी रही है। आज भी शिक्षा की दृष्टि से यह अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व का स्थान है / भगवान् महावीर के समय की बात है, वहां के राजा का नाम जितशत्रु था / जितशत्रु का राज्य काफी विस्तृत था / सम्बद्ध वर्णनों से ऐसा प्रतीत होता है, चम्पा आदि उस समय के बड़े-बड़े नगर उसके राज्य में थे। उन दिनों नगरों के उपकण्ठ में चैत्य हुआ करते थे, जहां नगर में आने वाले प्राचार्य, साधु-संन्यासी आदि रुकते थे। वाराणसी में कोष्ठक नामक चैत्य था / आज भी नगरों के बाहर ऐसे बगीचे, बगीचियां, देवस्थान, विश्रामस्थान आदि होते ही हैं। वाराणसी में चुलनीपिता नामक एक गाथापति निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम श्यामा था / चुलनीपिता अत्यन्त समृद्ध, धन्य-धान्य-सम्पन्न गृहस्थ था। उसकी सम्पत्ति प्रानन्द तथा कामदेव से भी कहीं अधिक थी / आठ करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं उसके निधान में थीं। ऐसा प्रतीत होता है, उन दिनों बड़े समृद्ध जन कुछ ऐसी स्थायी पूजी रखते थे, जिसका वे किसी कार्य में उपयोग नहीं करते थे / प्रतिकूल समय में काम लेने के लिए वह एक सुरक्षित निधि के रूप में होती थी। व्यापारव्यवसाय में सम्पत्ति जहां खब बढ़ सकती है, वहां कम भी हो सकती है, सारी की सारी समाप्त भी हो सकती है। इसलिए उनकी दृष्टि में यह आवश्यक था कि कुछ ऐसी पूजी होनी ही चाहिए, जो अलग रखी रहे, समय पर काम आए / यह अच्छा विभाजन उन दिनों अपने पूजी के उपयोग और विनियोग में था। चुलनीपिता ने आठ करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार में लगा रखी थी। उसकी आठ करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं घर के उपकरण, साज-सामान तथा वैभव में प्रयुक्त थीं। एक ऐसा सन्तुलित जीवन उस समय के समृद्ध जनों का था, वे जिस अनुपात में अपनी सम्पत्ति व्यापार में लगाते, सुरक्षित रखते, उसी अनुपात में घर की शान, गरिमा, प्रभाव तथा सुविधा हेतु भी लगाते थे। उन दिनों देश की आबादी कम थी, भूमि बहुत थी, इसलिए भारत में गो-पालन का कार्य बड़े व्यापक रूप में प्रचलित था। आनन्द और कामदेव के चार और छह गोकुल होने का वर्णन पाया है, वहां चुलनीपिता के दस-दस हजार गायों के आठ गोकुल थे। इस साम्पत्तिक विस्तार और अल-अचल धन से यह स्पष्ट है कि चुलनीपिता उस समय का एक अत्यन्त वैभवशाली पुरुष था। पुराने साहित्य को जब पढ़ते हैं तो एक बात सामने आती है। अनेक पुरुष बहुत वैभव और सम्पदा के स्वामी होते थे, सब तरह का भौतिक या लौकिक सुख उन्हें प्राप्त था, पर वे सुखों के उन्माद में बह नहीं जाते थे। बे समय पर उस जीवन के सम्बन्ध में भी सोचते थे; जो धन, सम्पत्ति वैभव, भोग तथा विलास से पृथक् है / पर, है वास्तविक और उपादेय।। भगवान महावीर के आगमन पर जैसा आनन्द और कामदेव को अपने जीवन को नई दिशा देने का प्रतिबोध मिला, चुलनीपिता के साथ भी ऐसा ही घटित हुआ। भगवान महावीर जब अपने जनपद-विहार के बीच वाराणसी पधारे तो चुलनीपिता ने भी भगवान् की धर्मदेशना सुनी, वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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