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________________ 102] [उपासकदशांगसूत्र छेवेत्ता, आलोइयपडिक्कते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मडिसयस महाविमाणस्स उत्तरपुरत्यिमेणं अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने / तत्य णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता / कामदेवस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। श्रमणोपासक कामदेव ने अणुव्रत (गुणवत, विरमण, प्रत्याख्यान तथा पोषधोपवास) द्वारा प्रात्मा को भावित किया--आत्मा का परिष्कार और परिमार्जन किया। बीस वर्ष तक श्रमणोपासक पर्याय-श्रावकधर्म का पालन किया / ग्यारह उपासक-प्रतिमानों का भली-भांति अनुसरण किया। एक मास की संलेखना और साठ भोजन-एक मास का अनशन सम्पन्न कर आलोचना, प्रतिक्रमण कर मरण-काल आने पर समाधिपूर्वक देइ-त्याग किया। देह-त्याग कर वह सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान-कोण में स्थित अरुणाभ विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ। वहां अनेक देवों की आयु चार पल्योपम की होती है। कामदेव की आयु भी देवरूप में चार पल्योपम की बतलाई गई है। 123. से णं भंते ! कामदेवे ताओ देव-लोगाओ आउ-क्खएणं भव-क्खएणं ठिइ-क्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता, कहिं गमिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ / निक्खेवो' // सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं बीयं अज्झयणं समतं // गौतम ने भगवान महावीर से पूछा-भन्ते ! कामदेव उस देव-लोक से आयु, भव एवं स्थिति के क्षय होने पर देव-शरीर का त्याग कर कहां जायगा ? कहां उत्पन्न होगा? भगवान् ने कहा-गौतम ! कामदेव महाविदेह-क्षेत्र में सिद्ध होगा-मोक्ष प्राप्त करेगा / / निक्षेप // / / सातवें अंग उपासकदशा का द्वितीय अध्ययन समाप्त / / 1. एवं खलु जम्बू ! समणेण जाव सम्पत्तेणं दोच्चस्स अझयणस्स अयमठे पण्णत्तेत्ति बेमि / 2. निगमन-आर्य सुधर्मा बोले-जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने उपासकदशा के द्वितीय अध्ययन का यही अर्थ--भाव कहा था, जो मैंने तुम्हें बतलाया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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