________________ 84] उपासकदशांगसूत्र साधना में विघ्न करने के लिए एक मिथ्यात्वी देव आया। उसने कामदेव को भयभीत और संत्रस्त करने हेतु एक अत्यन्त भीषण, विकराल, भयावह पिशाच का रूप धारण किया, जिसे देखते ही मन थर्रा उठे। पिशाच ने तीक्ष्ण खड्ग हाथ में लिए हुए कामदेव को डराया-धमकाया और कहा कि तम अपनी उपासना छोड़ दो, नहीं तो अभी इस तलवार से काट कर टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा / कामदेव विवेकी और साहसी पुरुष था, दृढनिष्ठ था / परीक्षा की घड़ी ही तो वह कसौटी है, जब व्यक्ति खरा या खोटा सिद्ध होता है। कामदेव की परीक्षा थी। जब कामदेव अविचल रहा तो पिशाच और अधिक ऋद्ध हो गया। उसने दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसे ही कहा। पर, कामदेव पूर्ववत् दृढ एवं सुस्थिर बना रहा / तब पिशाच ने जैसा कहा था, कामदेव की देह के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। कामदेव प्रात्म-दृढता और धैर्य के साथ इस घोर वेदना को सह गया, चूतक नहीं किया। यह देवमायाजन्य था, इतनी त्वरा से हुआ कि तत्काल कामदेव दैहिक दृष्टि से यथावत् हो गया। उस देव ने कामदेव को साधना से विचलित करने के लिए और अधिक कष्ट देने का सोचा। एक उन्मत्त, दुर्दान्त हाथी का रूप बनाया / कामदेव को आकाश में उछाल देने, दांतों से बींध देने और पैरों से रौंद देने की धमकी दी। एक बार, दो बार, तीन बार यह किया। कामदेव स्थिर और दृढ रहा / तब हाथी-रूपधारी देव ने कामदेव को जैसा उसने कहा था, घोर कष्ट दिया / पर, कामदेव की दृढता अविचल रही। देव ने एक बार फिर प्रयत्न किया। वह उग्र विषधर सर्प बन गया। सर्प के रूप में उसने कामदेव को क्रूरता से उत्पीडित किया, उसकी गर्दन में तीन लपेट लगा कर छाती पर डंक मारा। पर, उसका यह प्रयत्न भी निष्फल गया। कामदेव जरा भी नहीं डिगा। परीक्षा की कसौटी पर वह खरा उतरा। विकार-हेतुओं के विद्यमान रहते हुए भी जो चलित नहीं होता, वास्तव में वही धीर है। अहिंसा हिंसा पर विजयिनी हुई / अहिंसक कामदेव से हिंसक देव ने हार मान ली / देव के सुह से निकल पड़ा-'कामदेव' ! निश्चय ही तुम धन्य हो / ' वह देव कामदेव के चरणों में गिर पड़ा, क्षमा मांगने लगा / उसने वह सब बताया कि सौधर्म देवलोक में उसने इन्द्र के मुंह से कामदेव की धार्मिक दृढता की प्रशंसा सुनी थी, जिसे वह सह नहीं सका / इसीलिए वह यों उपसर्ग करने आया / ___ उपासक कामदेव का मन उपासना में रमा था। जब उसने उपसर्ग को समाप्त हुआ जाना, तो स्वीकृत प्रतिमा का पारण-समापन किया। शुभ संयोग ऐसा बना, भगवान महावीर अपने जनपद-विहार के बीच चम्पा नगरी में पधार गए / कामदेव ने यह सुना तो सोचा, कितना अच्छा हो, मैं भगवान् को वन्दन-नमस्कार कर, पोषध का समापन करू / तदनुसार वह पूर्णभद्र चैत्य, जहाँ भगवान् विराजित थे, पहुँचा / भगवान् के दर्शन किए, अत्यन्त प्रसन्न हुआ / भगवान् तो सर्वज्ञ थे / जो कुछ घटित हुआ, जानते ही थे / उन्होंने कामदेव को सम्बोधित कर उन तीनों उपसर्गों का जिक्र किया, जिन्हें कामदेव निर्भय भाव से झेल चका था / भगवान् ने कामदेव को सम्बोधित कर कहा-कामदेव ! क्या यह सब घटित हुआ? कामदेव ने विनीत भाव से उत्तर दिया-भन्ते ! ऐसा ही हुआ। भगवान् महावीर ने कामदेव के साथ हुई इस घटना को दृष्टि में रखते हुए उपस्थित साधुसाध्वियों को सम्बोधित करते हुए कहा-एक श्रमणोपासक गृहस्थी में रहते हुए भी जब धर्माराधना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org