________________ 62] [उपासकदशांगसूत्र पल्योपम के तीन भेद हैं-१. उद्धार-पल्योपम, 2. अद्धा-पल्योपम, 3. क्षेत्र-पल्योपम / उद्धार-पल्योपम- कल्पना करें, एक ऐसा अनाज का बड़ा कोठा या कुआँ हो, जो एक योजन [चार कोस] लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा हो / एक दिन से सात दिन की आयु वाले नवजात यौगलिक शिशु के बालों के अत्यन्त छोटे टुकड़े किए जाएं, उनसे ठूस-ठूस कर उस कोठे या कुएं को अच्छी तरह दबा-दबा कर भरा जाय / भराव इतना सघन हो कि अग्नि उन्हें जला न सके, चक्रवर्ती की सेना उन पर से निकल जाय तो एक भी कण इधर से उधर न हो सके, गंगा का प्रवाह बह जाय तो उन पर कुछ असर न हो सके। यों भरे हुए कुए में से एक-एक समय में एक-एक बाल-खंड निकाला जाय / यों निकालते निकालते जितने काल में वह कुआँ खाली हो, उस काल-परिमाण को उद्धार-पल्योपम कहा जाता है / उद्धार का अर्थ निकालना है / बालों के उद्धार या निकाले जाने के आधार पर इसकी संज्ञा उद्धार-पल्योपम है / यह संख्यात समय-प्रमाण माना जाता है। उद्घार पल्योपम के दो भेद हैं सूक्ष्म एवं व्यावहारिक / उपर्युक्त वर्णन व्यावहारिक उद्धार-पल्योपम का है / सूक्ष्म उद्धार-पल्योपम इस प्रकार है व्यावहारिक उद्धार-पल्योपम में कुएं को भरने में यौगलिक शिशु के बालों के टुकड़ों की जो चर्चा पाई है, उनमें से प्रत्येक टुकड़े के असंख्यात अदृश्य खंड किए जाएँ। उन सूक्ष्म खंडों से पूर्ववणित कुआँ ठूस-ठूस कर भरा जाय / वैसा कर लिये जाने पर प्रतिसमय एक-एक खंड कुएं में से निकाला जाय, यों करते-करते जितने काल में वह माँ, बिलकुल खाली हो जाय, उस काल-अवधि को सूक्ष्म उद्धार-पल्योपम कहा जाता है। इसमें संख्यात-वर्ष-कोटि परिमाण-काल माना जाता है। अद्धा-पल्योपम-अद्धा देशी शब्द है, जिसका अर्थ काल या समय है। आगम के प्रस्तुत प्रसंग में जो पल्योपम का जिक्र आया है, उसका आशय इसी पल्योपम से है। इसकी गणना का क्रम इस प्रकार है–यौगलिक के बालों के टुकड़ों से भरे हुए कुएं में से सौ-सौ वर्ष में एक-एक टुकड़ा निकाला जाय / इस प्रकार निकालते-निकालते जितने काल में वह कुआँ बिलकुल खाली हो जाय, उस कालावधि को अद्धा-पल्योपम कहा जाता है / इसका परिमाण संख्यात वर्षकोटि है / अद्धा-पल्योपम भी दो प्रकार का होता है-सूक्ष्म और व्यावहारिक। यहां जो वर्णन किया गया है, वह व्यावहारिक अद्धा-पल्योपम का है। जिस प्रकार सूक्ष्म उद्धार-पल्योपम में यौगलिक शिशु के बालों के टुकड़ों के असंख्यात अदृश्य खंड किए जाने की बात है, तत्सदृश यहां भी वैसे ही असंख्यात अदृश्य केश-खंड़ों से वह कुआँ भरा जाय / प्रति सौ वर्ष में एक खंड निकाला जाए। यों निकालते निकालते जब कुआँ बिलकुल खाली हो जाय, वैसा होने में जितना काल लगे, वह सूक्ष्म अद्धा-पल्योपम कोटि में आता है / इसका काल-परिमाण असंख्यात वर्षकोटि माना गया है। क्षेत्र-पल्योपम--ऊपर जिस कुएं या धान के विशाल कोठे की चर्चा है, यौगलिक के बालखंडों से उपयंक्त रूप में दबा-दबा कर भर दिये जाने पर भी उन खंडों के बीच में आकाश-प्रदेश रिक्त स्थान रह जाते हैं। वे खंड चाहे कितने ही छोटे हों, अाखिर वे रूपी या मूर्त हैं, अाकाश अरूपी या अमूर्त है / स्थूल रूप में उन खंडों के बीच रहे आकाश-प्रदेशों की कल्पना नहीं का जा सकती, पर सूक्ष्मता से सोचने पर वैसा नहीं है। इसे एक स्थूल उदाहरण से समझा जा सकता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org