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________________ [उपासकदशांगसूत्र परिकिण्णा धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरहित्ता वाणियगामं नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव दूइपलासए चेइए तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ, णमंसइ; वंदित्ता, णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहे विणएणं पंजलियडा) पज्जुवासइ / श्रमणोपासक अानन्द ने जब अपनी पत्नी शिवनन्दा से ऐसा कहा तो उसने हृष्ट-तुष्टअत्यन्त प्रसन्न होते हुए [चित्त में प्रानन्द एवं प्रीति का अनुभव करते हुए अतीव सौम्य मानसिक भावों से युक्त तथा हर्षातिरेक से विकसित-हृदय हो,] हाथ जोड़े, सिर के चारों ओर घुमाए तथा अंजलि बांधे, 'स्वामी ऐसा ही अर्थात् आपका कथन स्वीकार है,' यों आदरपूर्ण शब्दों से पति को सम्बोधित-प्रत्युत्तरित करते हुए अपने पति आनन्द का कथन स्वीकृतिपूर्ण भाव से विनयपूर्वक सुना / तब श्रमणोपासक अानन्द ने अपने सेवकों को बुलाया और कहा-तेज चलने वाले, एक जैसे खुर, पूछ तथा अनेक रंगों से चित्रित सींगवाले, गले में सोने के गहने और जोत धारण किये, गले से लटकती चांदी की घंटियों सहित नाक में उत्तम सोने के तारों से मिश्रित पतली-सी सूत की नाथ से जुड़ी रास के सहारे वाहकों द्वारा सम्हाले हुए, नीले कमलों से बनी कलंगी से युक्त मस्तक वाले, दो युवा बैलों द्वारा खींचे जाते, अनेक प्रकार की मणियों और सोने की बहुत-सी घंटियों से युक्त, बढ़िया लकड़ी के एकदम सीधे, उत्तम और सुन्दर बने जुए सहित, श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त धार्मिक कार्यों में उपभोग में आने वाला यानप्रवर-श्रेष्ठ रथ शीघ्र ही उपस्थित करो, उपस्थित करके मेरी यह आज्ञा वापिस करो अर्थात् आज्ञानुसार कार्य हो जाने की सूचना दो। श्रमणोपासक आनन्द द्वारा यों कहे जाने पर सेवकों ने अत्यन्त प्रसन्न होते हुए विनयपूर्वक अपने स्वामी की आज्ञा शिरोधार्य की और जैसे शीघ्रगामी बैलों से युक्त यावत् धार्मिक उत्तम रथ के लिए आदेश दिया गया था, उपस्थित किया। आनन्द की पत्नी शिवनन्दा ने स्नान किया, नित्य-नैमित्तिक कार्य किये, कौतुक-देहसज्जा की दृष्टि से आंखों में काजल प्रांजा, ललाट पर तिलक लगाया, प्रायश्चित्त-दुःस्वप्नादि दोषनिवारण हेतु चन्दन, कुकुम, दधि, अक्षत आदि से मंगल-विधान किया, शुद्ध, उत्तम, मांगलिक वस्त्र पहने, थोड़े से संख्या में कम पर बहुमूल्य आभूषणों से देह को अलंकृत किया / दासियों के समुह से घिरी वह धार्मिक उत्तम रथ पर सवार हुई / सवार होकर वाणिज्य ग्राम नगर के बीच से गुजरी, जहाँ दुतीपलाश चैत्य था, वहाँ पाई, प्राकर धार्मिक उत्तम रथ से नीचे उतरी, नीचे उतर कर दासियों के समूह से घिरी वहाँ गई जहाँ भगवान् महावीर विराजित थे / जाकर तीन बार आदक्षिणप्रदक्षिणा की, वन्दन नमस्कार किया, भगवान् के न अधिक निकट, न अधिक दूर सम्मुख अवस्थित हो, नमन करती हुई, सुनने की उत्कंठा लिए, विनयपूर्वक हाथ जोड़े, पर्युपासना करने लगी। 60. तए णं समणे भगवं महावीरे सिवनंदाए तोसे य महइ जाव' धम्मं कहेइ। तव श्रमण भगवान महावीर ने शिवनन्दा को तथा उपस्थित परिषद् [जन-समूह] को धर्म-देशना दी। 1. देखें सूत्र-संख्या 11 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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