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________________ [जाताधर्मकथा ___ दीक्षा की पहली रात थी / ज्येष्ठानुक्रम-बड़े-छोटे के क्रम से संस्तारक (बिछौने) बिछाए गये। मेघमुनि उस समय सब से छोटे थे। उनका बिस्तर द्वार के पास लगा, जहाँ से मुनियों का आवागमन था। पाते-जाते मुनियों के पैरों की धूल उनके शरीर पर गिरती, कभी पैरों की टक्कर लगती / फूलों की सेज पर सोने वाले मेघमुनि को ऐसी स्थिति में निद्रा कैसी आती ? बड़े-कष्ट में वह रात व्यतीत हुई, मगर उन्होंने प्रातः ही उपाश्रय छोड़कर वापिस राजमहल में लौट जाने का विचार कर लिया। अलवत्ता भगवान् महावीर को अनुमति लेकर ही ऐसा करने का निश्चय किया / प्रातःकाल जब वे अनुमति लेने भगवान् के निकट पहुँचे तो अन्तर्यामी भगवान ने उनके मनोभाव को पहले ही प्रकट कर दिया। साथ ही पूर्व के हाथी के भवों में सहन की गई घोरातिघोर व्यथाओं का विस्तृत वर्णन सुनाया / कहा—'अब तुम इतना-सा कष्ट भी सहन नहीं कर सकते ?' भगवान के वचन सुनते ही मेधमुनि को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया / वे स्पष्ट रूप से अपने पूर्वभवों को देखने-जानने लगे / अपनी स्खलना-दुर्बलता के लिए पश्चात्ताप करने लगे / बोले —'भंते ! आज से दो नेत्र छोड़कर यह समग्र शरीर श्रमण निग्रन्थों की सेवा के लिए समर्पित है।' मेघमुनि ने पुनः दीक्षा अंगीकार करके अपनी स्खलना के लिए प्रायश्चित्त किया। ग्यारह अंगों का अध्ययन किया / भिक्षु-प्रतिमाएँ अंगीकार की, गुणरत्नसंवत्सर तपश्चरण किया / इन तपश्चर्यानों से उनका शरीर निर्बल हो गया, किन्तु आत्मा अतिशय बलशाली बन गई / समाधिपूर्वक शरीर त्याग कर वे विजय नामक अनुत्तर विमान में देव के रूप में जन्मे / वहाँ से च्यवन कर मनुष्यभव धारण करके अन्त में कैवल्य प्राप्त करके वे शाश्वत सुख--मुक्ति के भागी होंगे। विस्तृत विवेचन जानने के लिए पाठक इस अध्ययन का स्वयं अध्ययन करें / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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