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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात ] [5 दिया गया / कलाचार्य ने पुरुष को बहतर कलाओं की शिक्षा दी। उन कलाओं का नामोल्लेख इस प्रसंग में किया गया है। कलाकुशल मेघ के अंग-अंग खिल उठे। वह अठारह देशी भाषाओं में प्रवीण, गीत-नृत्य में निपुण और युद्ध-कला में भी निष्णात हो गया। तत्पश्चात् पाठ राजकुमारियों के साथ एक ही दिन उसका विवाह किया गया। इस प्रकार राजकुमार मेघ उत्तम राजसी भोग-उपभोग भोगने लगा। ___ कुछ काल के पश्चात् जनपद-विहार करते-करते और जगत् के जीवों को शाश्वत एवं पारमार्थिक सुख तथा कल्याण का पथ प्रदर्शित करते हुए भगवान् महावीर का राजगृह नगर में पदार्पण हुआ / राजा-प्रजा सभी धर्मदेशना श्रवण करने के लिए प्रभु की सेवा में उपस्थित हुए। मेघकुमार को जब भगवान के समवसरण का वृत्तान्त विदित हुआ तो वह भी कहाँ पीछे रहने वाला था / प्रात्मा में जब एक बार सच्ची जागृति या जाती है, अपने असीम आन्तरिक वैभव को झांकी मिल जाती है, आत्मा जब एक बार भी स्व-संवेदन के अद्भुत, अपूर्व अमृत-रस का आस्वादन कर लेता है. तब संसार का उत्तम से उत्तम वैभव और उत्कृष्ट से उत्कृष्ट भोग भी उसे वालू के कवल के समान नीरस, निस्वाद और फीके जान पड़ते हैं। राजकुमार मेघ का विवेक जागृत हो चुका था। वह भी भगवान की उपासना के लिए पहुँचा। धर्मदेशना श्रवण की। भगवान का एक-एक वोल मानो अमृत का एक-एक बिन्दु था। उसका पान करते ही उसके ग्राह्लाद की सोमा न रहो / आत्मा लोकोत्तर आलोक से उद्भासित हो उठी / उसने अपने-अापको भगवत्-चरणों में समर्पित कर दिया / सम्राट के लाडले नौजवान पुत्र ने भिक्षु बनने का सुदृढ़ संकल्प कर लिया। मेघ माता-पिता की अनुमति प्राप्त करने उनके पास पहुँचा / दीक्षा की बात सुनते ही माता धारिणी देवी तो बेहोश होकर धड़ाम से धरती पर गिर पड़ी और पिता श्रेणिक सम्राट चकित रह गए। उन्होंने मेघकुमार को प्रथम तो अनेक प्रकार के सांसारिक प्रलोभन देकर ललचाना चाहा / जब उनका कुछ भी असर न हुआ तो साधु-जीवन की कठोरता, भयंकरता एवं दुस्साध्यता का वर्णन किया / यह सब भी जब विफल हुआ तो माता-पिता समझ गए --'सूरदास की कारी कमरिया चढ़े न दूजो रंग / ' आखिर माता-पिता ने अनमने भाव से एक दिन के लिए राज्यासीन होने का आग्रह किया, जिसे मेघ ने मौनभाव से स्वीकार कर लिया। बड़े ठाठ-बाट से राज्याभिषेक हुआ। राजकुमार मेघ अब सम्राट् मेध बन गए / मगर उनका संकल्प कब बदलने वाला था ! तत्काल ही उन्होंने संयम ग्रहण करने की अभिलाषा व्यक्त की और उपकरणों की मांग की / एक लाख स्वर्ण-मोहरों से पात्र एवं एक लाख से वस्त्र खरीदे गए / एक लाख मोहरें देकर शिरोमुडन के लिए नाई बुलवाया गया / बड़े ऐश्वर्य के साथ दीक्षा हो गई ! सम्राट ने स्वेच्छापूर्वक भिक्षुक-जीवन अंगीकार कर लिया। इस प्रकार की महान क्रान्ति करने का सामर्थ्य सिर्फ धर्म में ही है / संसार के अन्य किसी वाद में नहीं। 'समयं गोयम ! मा पमायए' सूत्र अत्यन्त सारपूर्ण है / जीवन का तलस्पर्शी और व्यापक अनुभव इसमें समाया है / मनुष्य एक क्षण के लिए असावधान होता है--गफलत में पड़ता है कि अन्तरतर में छिपे-दबे विकार आक्रमण कर बैठते हैं / बड़ी से बड़ी उंचाई पर से उसे नीचे गिरा देते हैं। मेघमुनि के जीवन में कुछ ऐसा ही घटित हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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