________________ द्वितीय श्रुतस्कन्ध : तृतीय वर्ग ] [ 545 सेसं जहा कालीए / णवरं–धरणस्स अग्गमहिसित्ताए उववाओ, सातिरेगं अद्धपलिओवमं ठिई / सेसं तहेव / इला देवी के चले जाने पर गौतम स्वामी ने उसका पूर्वभव पूछा / भगवान् ने उत्तर दिया-वाराणसी नगरी थी। उसमें काममहावन नामक चैत्य था। इल गाथापति था। उसकी इलश्री पत्नी थी। इला पुत्री थी। शेष वृत्तान्त काली देवी के समान / विशेष यह कि इला प्रार्या शरीर त्याग कर धरणेन्द्र की अग्रमहिषो के रूप में उत्पन्न हुई / उसको आयु अर्द्ध पल्योपम से कुछ अधिक है। शेष वृत्तान्त पूर्ववत् / ५५–एवं खलु ..... निक्खेवओ पढमज्झयणस्स। यहाँ प्रथम अध्ययन का निक्षेप-उपसंहार कह लेना चाहिए / 2-6 अज्झयणाणि (2-6 अध्ययन) ५६-एवं कमा सतेरा, सोयामणी, इंदा, घणा, विज्जया वि; सव्वाओ एयाओ धरणस्स अग्गहिसीओ। इसी क्रम से (1) सतेरा, (2) सौदामिनी (6) इन्द्रा (4) घना और (5) विद्युता, इन पांच देवियों के पांच अध्ययन समझ लेने चाहिए / ये सब धरणेन्द्र की अग्रमहिषियां हैं। विवेचन-किन्हीं-किन्हीं प्रतियों में कमा (क्रमा) को पृथक् नाम माना गया है और 'घणा विज्जुया' इन दो के स्थानों पर 'धनविद्युता' एक नाम मान कर पांच की पूर्ति की गई है / एक प्रति में 'कमा' पृथक्' और 'घणा' तथा 'विज्जुआ' को भी पृथक् स्वीकार किया है, किन्तु ऐसा मानने पर एक नाम अधिक हो जाता है, जो समीचीन नहीं है। 7-12 अज्झयणाणि (7-12 अध्ययन) ५७-एवं छ अज्झयणा वेणुदेवस्स वि अविसेसिया भाणियन्वा / इसी प्रकार छह अध्ययन, बिना किसी विशेषता के वेणुदेव के भी कह लेने चाहिए / 13-54 अज्झयणाणि (13-54 अध्ययन) ५८-एवं जाव [हरिस्स अग्गिसिहस्स पुण्णस्स जलकंतस्स अमियगतिस्स वेलंबस्स] घोसस्स वि एए चेव छ-छ अज्झयणा / इसी प्रकार हरि, अग्निशिख, पूर्ण, जलकान्त, अमितगति वेलम्ब और] घोष इन्द्र को पटरानियों के भी यही छह-छह अध्ययन कह लेने चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org