________________ तइओ वग्गो-तृतीय वर्ग पढम अज्झयणं प्रथम अध्ययन ५१-उक्खेवओ तइयवग्गस्स / एवं खलु जम्बू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं तइअस्स वग्गस्स चउप्पण्णं अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा-पढमे अज्झयणे जाव चउप्पण्णइमे अज्झयणे / तीसरे वर्ग का उपोद्घात समझ लेना चाहिए, अर्थात् जम्बूस्वामी के प्रश्न से उसकी भूमिका जान लेना चाहिए। सुधर्मास्वामी ने उत्तर दिया-हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् मुक्तिप्राप्त ने तीसरे वर्ग के चौपन अध्ययन कहे हैं / वे इस प्रकार प्रथम अध्ययन यावत् चौपनवाँ अध्ययन / ५२-जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं तइयस्स वग्गस्स चउप्पण्णं अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अछे पण्णत्ते ? (प्रश्न) भगवन् ! यदि यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने धर्मकथा के तीसरे वर्ग के चौपन अध्ययन कहे हैं तो भगवन् ! प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् ने क्या अर्थ कहा है ? ५३-एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए, सामी समोसढे, परिसा णिग्गया जाव पज्जुवासइ / तेणं कालेणं तेणं समएणं इला' देवी धारणीए' रायहाणीए इलावतंसए भवणे इलंसि सोहासणंसि, एवं कालीगमएणं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता पडिगया। (उत्तर) हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था / गुणशील चैत्य था। भगवान् पधारे / परिषद् निकली और भगवान् की उपासना करने लगी। उस काल और उस समय इला देवी धरणी नामक राजधानी में इलावतंसक भवन में, इला नामक सिंहासन पर आसीन थी। (उसने अवधिज्ञान से भगवान् का पदार्पण जाना, भगवान की सेवा में उपस्थित हुई और) काली देवी के समान भी यावत् नाटयविधि दिखलाकर लौट गई। ५४---पुत्वभवपुच्छा। वाराणसीए णयरीए काममहाबणे चेइए, इले गाहावई, इलसिरी भारिया, इला दारिया, 1. पाठान्तर-अला'। 2. पाठान्तर--'धरणाए'। 3. पाठान्तर-अलाक०। 4. पाठान्तर-'अलंसि' / Jain Education International * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org