________________ 546 } [ ज्ञाताधर्मकथा __ ५९--एवमेते दाहिणिल्लाणं इंदाणं चउप्पण्णं अज्झयणा भवंति / सव्वाओ वि वाणारसीए महाकामवणे चेइए। तइयवग्गस्स निक्खेवओ। इस प्रकार दक्षिण दिशा के इन्द्रों के चौपन अध्ययन होते हैं / ये सब वाणारसी नगरी के महाकामबन नामक चैत्य में कहने चाहिए / ___ यहाँ तीसरे वर्ग का निक्षेप भी कह लेना चाहिए, अर्थात् भगवान् ने तीसरे वर्ग का यह अर्थ कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org