________________ बसाया था। अत: उसका नाम हस्तिनापुर पड़ा। महाभारत काल में वह कौरवों की राजधानी थी / 210 अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को वहां का राजा बनाया था।१८ विविध तीर्थ कल्प के अभिमतानुसार ऋषभदेव के पुत्र कुरु थे। उनके एक पुत्र हस्ती थे, उन्होंने हस्तिनापुर बसाया२१६ था / विष्णुकुमार मुनि ने बलि द्वारा हवन किये जाने बाले 700 मुनियों की यहाँ रक्षा की थी। सनत्कुमार, महापद्म, सुभौम और परशुराम का जन्म इसी नगर में हुआ था। इसी नगर में कार्तिक श्रेष्ठी ने मुनिसुव्रत स्वामी के पास संयम लिया था और सौधर्मेन्द्र पद प्राप्त किया था। शांतिनाथ, कथनाथ और अरनाथ इन तीनों तीर्थंकरों और चक्रवत्तियों की जन्मभूमि होने का गौरण भी इसी नगर को है। पौराणिक दृष्टि से इस नगर का अत्यधिक महत्व रहा है। वसुदेवहिण्डी में इसे ब्रह्मस्थल कहा२२५ है / इसके अपर नाम गजपुर और नागपुर भी थे / वर्तमान में हस्तिनापुर गंगा के दक्षिण तट पर मेरठ से 22 मील दूर उत्तर-पश्चिम कोण में तथा दिल्ली से छप्पन मील दूर दक्षिण-पूर्व में विद्यमान है। पाली साहित्य में इसका नाम हस्तीपुर या हस्तिनापुर आता है / जैनाचार्य श्री नंदिषेण रचित "अजितशांति" नामक स्तवन में इस नगरी के लिए गयपुर, गजपुर, नागाह्वय, नागसाह्वय नागपुर, हस्थिणउर, हस्थिणाउर, हत्थिणार, हस्तिनीपुर प्रादि पर्यायवाचक शब्दों का उल्लेख किया गया है। इसी हस्तिनापुर नगर से द्रोपदी को धातकीखंड क्षेत्र की प्रमरकंका नगरी में ले जाया जाता है। श्रीकृष्ण पांडवों के साथ वहाँ पहुँचते हैं और द्रौपदो को, पद्मनाभ को पराजित कर पुन: ले आते हैं। श्रीकृष्ण पांडवों की एक हरकत से अप्रसन्न होकर कुन्ती की प्रार्थना से समुद्र तट पर नवीन मथुरा बसा कर वहाँ रहने की अनुमति देते हैं / इसमें पांडवों की दीक्षा और मुक्ति लाभ का वर्णन है। प्रस्तुत अध्ययन के प्रारम्भ में द्रौपदी के पूर्व भव का वर्णन है, जिसमें उसने नागधी के भव में धर्मरुचि अनगार को कड़वे तूंबे का आहार दिया था और जिसके फलस्वरूप अनेक भवों में उसे जन्म लेना पड़ा। इसमें कच्छुल नारद की करतूतों का भी परिचय है। इस अध्ययन में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि दुर्भावना के साथ जहर का दान देने से बहुत लम्बी भवपरम्परा बढ़ गई। दान सद्भावना के साथ और ऐसे पदार्थ का देना चाहिए जो हितप्रद हो / दूसरी बात, निदान साधक-जीवन का शल्य है। सुवती होने के लिए शल्यरहित होना चाहिए। एतदर्थ ही उमास्वति ने निःशल्यो व्रती२२२ लिखा है। माया, निदान और मिथ्यादर्शन ये तीन शल्य हैं जिनके कारण व्रतों के पालन में एकाग्रता नहीं पा पाती। ये शल्य अन्तर में पीड़ा उत्पन्न करते हैं। वह साधक को व्याकुल और बेचैन बनाता है। इन शल्यों से तीव्र कर्मबन्ध होता है। सुकुमालिका साध्वी ने अपनी उत्कृष्ट साधना को भौतिक पदार्थों को प्राप्त करने के लिए नष्ट कर दिया। इस अध्ययन में सांस्कृतिक दृष्टि से यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि उस युग में मर्दन के लिये ऐसे तेल तैयार किये जाते थे जिन के निर्माण में सौ स्वर्ण मुद्राएं और हजार स्वर्ण मुद्राएं व्यय होती थीं। शतपाक तेल में सौ प्रकार की ऐसी जड़ी-बूटियों का उपयोग होता था और सहस्रपाक में हजार औषधियों का। ये शारीरिक स्वास्थ्य के लिए प्रत्यन्त लाभप्रद होते थे। स्नान के लिए उष्णोदक, शीतोदक और गंधोदक प्रादि का उपयोग होता था। प्रस्तुत अध्ययन में गंगा महानदी को नौका के द्वारा पार करने का उल्लेख हैं। गंगा भारत की सबसे 217. महाभारत, पादिपर्व 100-12-244 / 218. महाभारत, प्रस्थान पर्व 1-8-245 / 219. विविध तीर्थकल्प में हस्तिनापुर कल्प, पृ. 27 / 220. जयवाणी पृ. 283-94 / 221. वसुदेव हिण्डी पृ. 165 / 222. तत्त्वार्थसूत्र 7-13 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org