________________ बड़ी नदी है। उसे देवताओं की नदी माना है। 223 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार वह देवाधिष्ठित 224 है। प्रागमों में अनेक स्थलों पर गंगा को महानदी माना है। 225 स्थानांग आदि में गंगा को महार्णव कहा है / 226 प्राचार्य अभय देव ने महार्णव शब्द को उपमावाचक माना है। 227 विशाल जलराशि के कारण वह समुद्र के समान है / पुराणकार ने गंगा को समुद्ररूपिणी कहा२२८ है / वैदिक दृष्टि से गंगा में नौ सौ नदियाँ मिलती हैं२२६ और जैन दृष्टि से चौदह हजार30 जिनमें यमुना, सरयू, कोशी, मही, गंडकी ब्रह्मपुत्र आदि बड़ी नदियाँ भी सम्मिलित हैं। प्राचीन युग में गंगा अत्यन्त विशाल थी / समुद्र में प्रवेश करते समय गंगा पाट साढे बासठ योजन चौड़ा था और वह पाँच कोस गहरी थी। आज गंगा उतनी विशाल नहीं है। गंगा और उसकी सहायक नदियों से अनेक विशालकाय नहरें निकल चुकी हैं। आधुनिक सर्वेक्षण के अनुसार गंगा 1557 मील लम्बे मार्ग को तयकर बंग सागर में मिलती है। वह वर्षाकालीन बाढ़ से 17,00,000 घन फुट पानी का प्रति सेकण्ड प्रस्ताव करती है 232 / इस अध्ययन के प्रमुख पात्र श्रीकृष्ण, पाण्डव, द्रौपदी आदि जैन और वैदिक प्रादि परम्परा के बहचचित और पादरणीय व्यक्ति रहे हैं, जिनके जीवन प्रसंगों से सम्बन्धित अनेक विराट काय ग्रंथ विद्यमान हैं / प्रस्तूत अध्ययन में श्रीकृष्ण के नरसिंह रूप का भी वर्णन है। नरसिहावतार की चर्चा श्रीमद् भागवत में है जो विष्ण के एक अवतार थे, पर श्रीकृष्ण ने कभी नरसिंह का रूप धारण किया हो, ऐसा प्रसंग वैदिक परंपरा के ग्रंथों में देखने में नहीं पाया, यहाँ पर उसका सजीव चित्रण हुअा है। सत्रहवें अध्ययन में जंगली अश्वों का उल्लेख है / कुछ व्यापारी हस्तिशीर्ष नगर से व्यापार हेतु नौकानों में परिभ्रमण करते हुए कालिक द्वीप में पहुँचते हैं / वहाँ वे चांदी, स्वर्ण और हीरे की खदानों के साथ श्रेष्ठ न के घोड़े देखते हैं। इसके पूर्व अध्ययनों में भी समुद्रयात्रा के उल्लेख पाये हैं / ज्ञाता में पोतपट्टन और जलपत्तन शब्द व्यवहृत हुए हैं जो समुद्री बन्दरगाह के अर्थ में हैं, वहाँ पर विदेशी माल उतरता था। कहीं-कहीं पर बेलातट और पोतस्थान शब्द मिलते हैं। पोतवहन शब्द जहाज के लिए प्राया है। उस युग में जहाज दो तरह के होते थे। एक माल ढोनेवाले, दूसरे यात्रा के लिए / बन्दरगाह तक हाथी या शकट पर चढ़कर लोग जाते थे। समुद्रयात्रा में प्रायः तुफान आने पर जहाज डगमगाने लगते / किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते, क्योंकि उस समय नौकानों में दिशासूचक यंत्र नहीं थे। इसलिए प्रासन्न संकट से बचने के लिए इन्द्र, स्कंद आदि देवताओं का स्मरण भी करते थे। पर यह स्पष्ट है कि भारतीय व्यापारी अत्यन्त कुशलता के साथ समुद्री व्यापार करना जानते थे। उन्हें सामुद्रिक मार्गों का भी परिज्ञान था / वाहन अल्प थे और आजकल की तरह सुद्ध और विराटकाय भी नहीं थे। इसलिए हवाओं 228. स्कंदपुराण काशीखंड 29 ग्र० 229. हारीत 1/7 230. जम्बू० 4 वक्षस्कार 231. वही० 232. हिन्दी विश्वकोप, नागरी प्रचारिणी सभा। 223. (क) स्कंदपुराण, काशीखण्ड 19 अध्याय (ख) अमरकोष 1/10/31 224. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 4 वक्षस्कार 225. (क) स्थानांग 5/3 (ख) समवायांग 24 वां समवाय (ग) जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति 4 बक्षस्कार (घ) निशीथसूत्र 12/42 (ङ) वृहत्कल्पसूत्र 4/32 226. (क) स्थानांग 5/2/1 (ख) निशीथ 12/42 (ग) बृहत्कल्प 4/32 227. (क) स्थानांग वृत्ति 5/2/1 (ख) बृहत्कल्पभाष्य टीका 56/16 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org