SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 525
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी ] [447 होकर निकली / निकल कर कुरु देश के बीचोंबीच होकर जहाँ सुराष्ट्र जनपद था, जहाँ द्वारवती नगरी थी और नगर के बाहर श्रेष्ठ उद्यान था, वहाँ आई / पाकर हाथी के स्कंध से नीचे उतरी। उतरकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो ! तुम जहां द्वारका नगरी है वहाँ जाओ, द्वारका नगरी के भीतर प्रवेश करो। प्रवेश करके कृष्ण वासुदेव को दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार कहना--'हे स्वामिन् ! आपके पिता की बहन (भुग्रा) कुन्ती देवी हस्तिनापुर नगर से यहाँ आ पहुँची हैं और तुम्हारे दर्शन को इच्छा करती हैं-तुमसे मिलना चाहती हैं।' १६२-तए णं ते कोड बियपुरिसा जाव कहेंति / तए णं कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसाणं अंतिए एयमठे सोच्चा णिसम्म हदुतु8 हथिखंधवरगए बारवईए नयरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव कोंती देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता कोंतीए देवीए पायग्गहणं करेइ, करित्ता कोंतीए देवीए सद्धि हस्थिखंधं दुरूहइ, दुरूहित्ता बारवईए नगरोए मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं गिहं अणुपविसइ / तब कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् कृष्ण वासुदेव के पास जाकर कुन्ती देवी के प्रागमन का समाचार कहा / कृष्ण वासुदेव कौटुम्बिक पुरुषों के पास से कुन्ती देवी के आगमन का समाचार सुनकर हषित और सन्तुष्ट हुए / हाथी के स्कंध पर आरूढ होकर द्वारवती नगरी के मध्यभाग में होकर जहाँ कुन्ती देवी थी, वहाँ आये पाकर हाथी के स्कंध से नीचे उतरे / नीचे उतर कर उन्होंने कुन्ती देवी के चरण ग्रहण किये -पैर छुए / फिर कुन्ती देवी के साथ हाथी पर आरूढ हुए / आरूढ होकर द्वारवती नगरी के मध्य भाग में होकर जहाँ अपना महल था, वहाँ आये / आकर अपने महल में प्रवेश किया / १६३-तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंति देवि व्हायं कयबलिकम्म जिमियभुत्तत्तरागयं जाव सुहासणवरगयं एवं वयासी- 'संदिसउ णं पिउच्छा ! किमागमणपओयणं?' कुन्ती देवी जब स्नान करके, बलिकर्म करके और भोजन कर चुकने के पश्चात् सुखासन पर बैठी, तब कृष्ण वासुदेव ने इस प्रकार कहा-'हे. पितृभगिनी ! कहिए, आपके यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ?' १६४–तए णं सा कोंती देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासो--'एवं खलु पुत्ता ! हस्थिणाउरे गयरे जुहिदिल्लस्स आगासतले सुहपसुत्तस्स दोवई देवी पासाओ ण णज्जइ केणइ अवहिया वा, णीया वा, अक्खिता वा, तं इच्छामि णं पुत्ता ! दोवईए देवीए मग्गणगवेसणं कयं / ' तब कुन्ती देवी ने कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार कहा-'हे पुत्र ! हस्तिनापुर नगर में युधिष्ठिर प्राकाशतल (अगासी) पर सुख से सो रहा था / उसके पास से द्रौपदी देवी को न जाने कौन अपहरण करके ले गया, अथवा खींच ले गया। अतएव हे पुत्र ! मैं चाहती हूँ कि द्रौपदी देवी की मार्गणा-गवेषणा करो।' १६५-तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंति पिच्छि एवं वयासी—'जं नवरं पिउच्छा ! दोवईए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy