________________ मल्ली भगवती का जन्म मिथिला में हना था। मिथिला उस युग की एक सुप्रसिद्ध नगरी थी। जातक की दृष्टि से मिथिला राज्य का विस्तार 300 योजन था। उसमें 16 सहस्र गाँव थे / सुरुचि जातक से भी मिथिला के विस्तार का पता चलता है। वाराणसी के राजा ने यह निश्चय किया था कि वह अपनी पुत्री का विवाह उसी राजकुमार के साथ करेगा जो एक पत्नीव्रत का पालन करेगा। मिथिला के राजकुमार सुरुचि के साथ विवाह की चर्चा चल रही थी। एक पत्नीव्रत की बात को श्रवण कर वहां के मंत्रियों ने कहा-मिथिला का विस्तार 7 योजन है और समुच्चय राष्ट्र का विस्तार 300 योजन है / हमारा राज्य बड़ा है, अत: राजा के अन्तःपुर में 1600 रानियां होनी'६३ चाहिए। रामायण में मिथिला को जनकपुरी कहा है। विविध तीर्थकल्प४ में इस हुत्ति कहा है और मिथिला को जगती'६५ कहा है। महाभारत वनपर्व (254) महावस्तु (प्र. 172) दिव्यावदान (प्र. 424) और रामायण प्रादिकाण्ड के अनुसार तीरभक्ति नाम है। यह नेपाल की सीमा पर स्थित है, वर्तमान में यह जनकपुर के नाम से प्रसिद्ध है, इसके उत्तर में मुजफ्फरपुर और दरभंगा के जिले हैं, (लाहा, ज्याग्रेफी प्राव प्री बुद्धिज्म पृ. 31, कनिंघम ऐश्येंट ज्याग्रेफी ऑव इण्डिया, एस. एस. मजुमदार संस्करण पृ. 71) इसके पास ही महाराजा जनक के भ्राता कनक थे। उनके नाम से कनकपुर बसा हुमा है। मिथिला से ही जैन श्रमणों की शाखा मैथिलिया'६६ निकली है / यहाँ पर भगवान महावीर ने छह वर्षावास संपन्न किये थे। प्राठवें गणधर प्रकंपित की भी यह जन्मस्थली है / यहीं पर प्रत्येकबुद्ध नमी को कंकण की ध्वनि को श्रवण कर वैराग्य उत्पन्न हुअा था।१६ इन्द्र ने नमि राजर्षि को कहा-मिथिला जल रही है और प्राप साधना को प्रोर मुस्तैदी से कदम उठा रहे हैं, तब नमि ने इन्द्र से कहा-इन्द्र 'महिलाए डज्झमाणीए' ण मे डझइ किंचणं' (उत्तरा. 9/14) उत्तराध्ययन की भांति महाभारत में भी जनक के सम्बन्ल में एक कथा आती है। प्रवल अन्निदाह के कारण भस्मीभूत होते हए मिथिला को देखकर अनासक्ति से जनक ने कहा---इस जलती हुई नगरी में मेरा कुछ भी नहीं जल रहा है 'मिथिलायाम् प्रदीप्तायाम न मे दहति किञ्चन / ' (महाभारत 12, 17, 18-19) महाजनक जातक में भी इसी प्रकार का वर्णन मिलता है। 'मिथिलायाम् दह्यमानाय न मे किञ्चि अदपथ (जातक 6, 54-55) / भगवान महावीर और बुद्ध के समय मिथिला में गणराज्य था। चतुर्थ निहव ने सामुच्छेदिकवाद का यहाँ प्रवर्तन किया था।९७० दशपूर्वधारी आर्य महागिरि का यह मुख्य रूप से विहारस्थल था११ / वाणगंगा और गंडक ये दो नदियां प्रस्तुत नगर को घेरकर बहती हैं / 172 मिथिला एक समृद्ध राष्ट्र था। जिनप्रभसूरि के समय वहाँ पर प्रत्येक धर कदलीवन से शोभित था। खीर वहाँ का प्रिय भोजन था। स्थान-स्थान पर वापी, कुप और तालाब थे। वहां की जनता धर्मनिष्ठ और धर्मशास्त्र 162. जातक (सं 406) भाग 4, पृ. 27 163. जातक (सं 488) भाग 4 पृ. 4,521-22 164. संपइकाले तिरहुत्ति देसोत्ति भण्णई-विविध तीर्थकल्प, पृ. 32 165. वही. पृ. 32 166. वही पृ. 32 167. कल्पसूत्र 213. पृ. 298 168. प्रावश्यकनियुक्ति गा. 644 169. उत्तराध्ययन सुखबोधा, पत्र 136-143 170. आवश्यकभाष्य गा. 131 171. प्रावश्यकनियुक्ति मा. 782 172. विविध तीर्थकल्प पृ. 32 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org