________________ 352 [ ज्ञाताधर्मकथा मेंढक का बन्दनार्थ प्रस्थान ३०-तए णं तस्स दद्दुरस्स बहुजणस्स अंतिए एयमह्र सोच्चा जिसम्म अयमेयारूवे अज्झस्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जेत्था—'एवं खलु समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे, तं गच्छामि णं वंदामि' जाव एवं संपेहेइ, संपेहित्ता गंदाओ पक्खरिणीओ सणियं सणियं उत्तरइ, उत्तरिता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए ददुरगईए वीईवयमाणे वीईवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। बहुत जनों से यह वृत्तान्त सुन कर और हृदय में धारण करके उस मेंढक को ऐसा विचार, चिन्तन, अभिलाषा एवं मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ—निश्चय ही श्रमण भगवान् महावीर यहाँ पधारे हैं, तो मैं जाऊँ और भगवान् की बन्दना करू / उसने ऐसा विचार किया। विचार करके वह धीरे-धीरे नन्दा पुष्करिणी से बाहर निकला / निकल कर जहाँ राजमार्ग था, वहाँ पाया। पाकर उत्कृष्ट दर्दु रगति से अर्थात् मेंढक के योग्य तीव्र चाल से चलता हुअा मेरे पास आने के लिए कृतसंकल्प हुआ रवाना हुप्रा / मेंढक का कुचलना ३१-इमं च णं सेणिए राया भंभसारे व्हाए कायकोउय जाव सव्वालंकारविभूसए हथिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामरेहि य उद्धवमाणेहि महया हयगयरहभडचडगरकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिडे मम पायदए हव्वमागच्छइ। तए णं से दद्दुरे सेणियस्स रपणो एगेणं आसकिसोरएणं वामपाएणं अक्कंते समाणे अंतनिघाइए कए यावि होत्था। __ इधर भंभसार अपरनामा श्रेणिक राजा ने स्नान किया एवं कौतुक-मंगल-प्रायश्चित्त क्रिया / यावत् वह सब अलंकारों से विभूषित हुआ और श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ हुआ। कोरंट वृक्ष के फलों की माला वाले छत्र से, श्वेत चामरों से शोभित होता हुमा, अश्व, हाथी, रथ और बड़े-बड़े सुभटों के समूह रूप चतुरंगिणी सेना से परिवृत होकर मेरे चरणों की वन्दना करने के लिए शीघ्रतापूर्वक पा रहा था। तब वह मेंढक श्रेणिक राजा के एक प्रश्वकिशोर (नौजवान घोड़े) के बाएँ पैर से कुचल गया। उसकी अाँतें बाहर निकल गईं। महावतों का स्वीकार ३२-तए णं से दद्दुरे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसकारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कट एगंतमवक्कमइ, करयलपरिग्गहियं तिक्खुत्तो सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी नमोऽथ णं अरुहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स मम धम्मायरियस्स जाव संपाविउकामस्स / पुदिव पि य गं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए, जाव [थूलए मुसावाए पच्चक्खाए, थूलए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए, थूलए मेहुणे पच्चक्खाए] थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए, तं इयाणि पि तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि, जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि, जावज्जीवं सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं पच्चक्खामि 1. अ. 13, सूत्र 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org