________________ तेरसमं अज्झरा : ददुरजायं श्री जम्बू का प्रश्न १--जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स णायज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, तेरसमस्स णं भंते ! णायज्झयणस्स के अठे पण्णत्ते ? जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया--भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने बारहवें ज्ञातअध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ कहा है तो तेरहवं ज्ञात-अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? श्री सुधर्मा का उत्तर 2 एव खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था। तत्थ णं रायगिहे णयरे सेणिए णामं राया होत्था / तस्स णं रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थ णं गुणसिलए नामं चेइए होत्था। सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी के प्रश्न का उत्तर देना प्रारम्भ किया-हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था / राजगृह के बाहर उत्तरपूर्वदिशा में गुणशील' नामक उद्यान था। ३-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे चउहि समणसाहस्सीहि जाव [छत्तीसाए अज्जियासाहस्सोहिं] सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुचि चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे, सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव रायगिहे पयरे, जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव समोसढे / अहापडिरूवं उग्गहं गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ / परिसा निग्गया। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर चौदह हजार साधुओं के तथा [छत्तीस हजार प्रायिकाओं के साथ अनुक्रम से विचरते हुए, एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हुए-सुखे-सुखे विहार करते हुए जहाँ राजगृह नगर था और गुणशील उद्यान था, वहाँ पधारे / यथायोग्य अवग्रह (स्थानक) की याचना करके संयम और तप से प्रात्मा को भावित करते हुए विचरने लगे / भगवान् को वन्दना करने के लिए परिषद् निकली और धर्मोपदेश सुन कर वापिस लौट गई। दर्दुर देव का आगमन-नाटय प्रदर्शन ४--तेणं कालेणं तेणं समएणं सोहम्मे कप्पे ददुरडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए ददुरंसि सीहासणंसि ददुरे देवे चहि सामाणियसाहस्सोहि, चहि अग्गमहिसीहि, तिहि परिसाहि, एवं जहा सूरियाभो जाव [सत्तहि अणिएहि सहिं अणियाहिवईहिं सोलसहि आयरक्खदेवसाहस्सीहिं बहूहि ददुरडिसगविमाणवासोहि वेमाणिएहिं देवेहि य देवीहि य सद्धि संपरिवुडे महयाहयनट्ट-गीयवाइय-तंतोतल-ताल-तुडिय-घणमुइंग-पटुपवाइय-रवेणं] दिव्वाई भोगभोगाइं भुजमाणो विहरइ / इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विपुलेणं ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे जाव नट्टविहि उवदंसित्ता पडिगए जहा सूरियाभे'। 1. विस्तृत वर्णन के लिए देखिए, रायपसेणियसूत्र में सूर्याभवर्णन / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org