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________________ [ ज्ञाताधर्मकथा आए, भाँति-भाँति को चिकित्सापद्धतियों का उन्होंने प्रयोग किया, मगर कोई भी सफल नहीं हो सका। उन चिकित्सापद्धतियों का नामोल्लेख मल पाठ में किया गया है. जो भारतीय पद्धति के इतिहास की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। अन्त में नन्द मणियार वावड़ी में आसक्ति के कारण प्रात्तध्यान से ग्रस्त होकर उसी वावड़ी में मेंढक की योनि में उत्पन्न हुा / लोगों के मुख से नन्द मणियार की प्रशंसा सुनकर उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया / तब उसने अपने मिथ्यात्व के लिए पश्चात्ताप करके प्रात्मसाक्षी से पुनः श्रावक के व्रत अंगीकार किए। तत्पश्चात् एक बार पुन: भगवान् महावीर का राजगृह में समवसरण हुा / जन-रव सुनकर उसे भी भगवान् के आगमन का वृत्तान्त विदित हुआ। भक्तिभाव से प्रेरित होकर वह भगवान् की उपासना के लिए रवाना हुआ, पर रास्ते में ही राजा श्रेणिक के एक घोड़े के पांव के नीचे आकर कुचल गया / जीवन का अन्त सन्निकट देखकर उसने अन्तिम समय को विशिष्ट पाराधना की और मृत्यु के पश्चात् देवपर्याय में उत्पन्न हुआ। देवगति का आयुष्य पूर्ण होने पर वह महाविदेह क्षेत्र में मनुष्यभव प्राप्त कर, चारित्र अंगीकार करके सुक्ति प्राप्त करेगा। _ विस्तार से वर्णन जानने के लिये स्वयं इस अध्ययन को पढ़िए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ..
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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