________________ तेरहवाँ अध्ययन : ददुरज्ञात सार : संक्षेप प्रस्तुत अध्ययन दर्दुर-ज्ञात के नाम से प्रसिद्ध है। कहीं-कहीं इसे 'मंडुक्क' नाम से भी अभिहित किया गया है। दोनों शब्दों के अर्थ में कोई भेद नहीं है। दर्दुर और मंडूक का अर्थ मेंढक है / इस अध्ययन में प्ररूपित कथा-वस्तु, विशेषतः कथानायक के आधार पर इसका नामकरण हुअा है, जैसा कि अन्य अध्ययनों का / फिर भी इस अध्ययन में जहाँ-तहाँ मूल पाठ में 'दर्दुर' शब्द का ही प्रयोग हुआ है। अतएव प्रकृत अध्ययन का नाम 'दर्दुर' हो अधिक संगत प्रतीत होता है / / 'दर्दुर' अध्ययन में निरूपित उदाहरण से पाठकों को जो बोध दिया गया है, उसमें दो बातें प्रधान हैं (1) सद्गुरु के समागम से आत्मिक गुणों की वृद्धि होती है / (2) आसक्ति अध:पतन का कारण है। उदाहरण का संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है भगवान् महावीर के राजगृह नगर में पदार्पण करने पर दर्दुरावतंसक विमान का वासी दर्दु र नामक देव वहाँ पाया / राजप्रश्नीयसूत्र में वर्णित सूर्याभ देव की तरह नाट्यविधि दिखाकर वह लौट गया / तब गौतम स्वामी के प्रश्न करने पर भगवान ने उसका परिचय दिया-उसके अतीत जन्म का, वर्तमान जन्म का और भावी जन्म का भी। भगवान ने कहा---राजगह नगर में नन्द नामक मणियार था। मेरा उपदेश सुनकर वह श्रमणोपासक हो गया / कालान्तर में साधु-समागम न होने से तथा मिथ्यादृष्टियों के साथ परिचय बढ़ने से वह मिथ्यात्वी हो गया, फिर भी तपश्चर्या आदि बाह्य क्रियाएँ पूर्ववत् करता रहा / एक बार ग्रीष्म ऋत में उसने पोषधशाला में अष्टमभक्त की तपश्चर्या की। तपश्चर्या के समय वह भूखप्यास से पीड़ा पाने लगा। तब उसके मन में ऐसी भावना उत्पन्न हुई, जो पोषध-अवस्था में नहीं होनी चाहिए थी। उसने एक वावड़ी, बगीचा आदि निर्माण कराने का संकल्प किया / दूसरे दिन पोषध समाप्त करके वह राजा के पास पहुँचा / राजा की अनुमति प्राप्त कर उसने एक सुन्दर वावड़ी बनवाई, वगीचे लगवाए और चित्रशाला, भोजनशाला, चिकित्साशाला तथा अलंकारशाला का निर्माण करवाया। बहुसंख्यक जन इनका उपयोग करने लगे और नन्द मणियार की प्रशंसा करने लगे। अपनी प्रशंसा एवं कीति सुनकर नन्द बहुत हर्षित होने लगा। वावड़ी के प्रति उसके हृदय में गहरी आसक्ति हो गई। एक बार नन्द के शरीर में एक साथ सोलह रोग उत्पन्न हो गए। उसने एक भी रोग मिटा देने पर चिकित्सकों को यथेष्ट पुरस्कार देने की घोषणा करवाई। अनेकानेक चिकित्सक 1. मुनिश्री नथमलजी म. द्वारा सम्पादित अंगमुत्ताणि 3 रा भाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org