________________ (7) पहराइया (8) अन्तक्खरिया (9) अक्खरपुट्ठिया (10) वैनयिकी (11) अंकलिपि (12) निह्नविकी (13) गणितलिपि (14) गंधर्व लिपि (15) प्रायंसलिपि (16) माहेश्वरी (17) दोमिलीलिपि (18) पोलिन्दी विशेषावश्यक टीका के अनुसार (1) हंस (2) भूत (3) यक्षी (4) राक्षसी (5) उड्डी (6) यवनी (7) तुरुक्की (8) कोरी (9) द्रविडी (10) सिंघवीय (11) मालविनी (12) नडि (13) नागरी (14) लाट (15) पारसो (16) अनिमित्ती (17) चाणक्की (18) मूलदेवी कल्पसूत्र टोका के अनुसार (1) लाटो (2) चौडी (3) डाहली (4) कानडी (5) गृजरी (6) सौरहठी (7) मरहठी (8) खुरासानी (9) कोंकणी (10) मागधी (11) सिंहली (12) हाडो (13) कोडी (14) हम्मीरी (15) परसी (16) मसी (17) मालवी (18) महायोधी चीनी भाषा में रचित “फा युग्रन् चु लिन्" नामक बौद्ध विश्वकोश में तथा "ललित-विस्तरा"१२० के अनुसार (1) ब्राह्मी (2) खरोष्ठी (3) पुष्करसारी (4) अंगलिपि (5) बंगलिपी (6) मगधलिपि (7) मांगल्यलिपि (8) मनुष्यलिपि (5) अंगुलीयलिपि (10) शकारिलिपी (11) ब्रह्मवलीलिपि (12) द्राविडलिपि (13) कनारिलिपि (14) दक्षिणलिपि (15) उग्रलिपि (16) संख्यालिपि (17) अनुलोमलिपि (18) ऊर्ध्वधनुलिपि (19) दरदलिपि (20) खास्यलिपि (21) चीनलिपि (22) हुणलिपि (23) मध्याक्षरविस्तरलिपि (24) पुष्पलिपि (25) देवलिपि (26) नागलिपि (27) यक्षलिपि (28) गंधर्वलिपि (29) किन्नरलिपि (30) महोरगलिपि (31) असुरलिपि (32) गरुडलिपि (33) मृगचक्रलिपि (34) चक्रलिपि (35) वायुमरुलिपि (36) भौवदेवलिपि (37) अंतरिक्षदेवलिपि (38) उत्तरकुरुद्वीपलिपि (39) अपदगोडादिलिपि (40) पूर्वविदेहलिपि (41) उत्क्षेपलिपि (82) निक्षेपलिपि (43) विक्षेपलिपि (44) प्रक्षेपलिपि (45) सागरलिपि (46) वज्रलिपि (47) लेखप्रतिलेखलिपि (88) अनुद्रतलिपि (49) शास्त्रावर्तलिपि (50) गणावर्तलिपि (51) उत्क्षेपावर्तलिपि (52) विक्षेपावतलिपि (53) पादलिखितलिपि (54) द्विरुत्तरपदसंधिलिखितलिपि (55) दशोत्तरपद संधिलिखितलिपि (56) अध्याहारिणीलिपि (57) सर्वरुत्संग्रहिणीलिपि (58) विद्यानुलोमलिपि (59) विमिश्रितलिपि (60) ऋषितपस्तप्तलिपि (61) धरणीप्रेक्षणलिपि (62) सौषधनिस्यदलिपि (63) सर्वसारसंग्रहणलिपि (64) सर्वभूतरुद्र ग्रहणी लिपि / इन लिपियों के सम्बन्ध में प्रागमप्रभाकर पृश्यविजयजी म.१२१ का यह अभिमत था कि इनमें अनेकों नाम कल्पित हैं। इन लिपियों के सम्बन्ध में अभी तक कोई प्राचीन शिलालेख भी उपलब्ध नहीं हुआ है, इससे भी यह प्रतीत होता है कि ये सभी लिपियाँ प्राचीन समय में ही लुप्त हो गई। या इन लिपियों का स्थान ब्राह्मीलिपि ने ले लिया होगा। मेरी बष्टि से अठारह देशीय भाषा और लिपियाँ ये दोनों पृथक-पृथक् होनी चाहिए। 118. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 464 की टीका 119. कल्पसूत्र टीका 120. ललितविस्तरा अध्याय 10 121. भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखनकला' पृ. 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org