________________ एक्कारसमं अज्झयण : दावदते जम्बूस्वामी का प्रश्न १-जइ गं भंते ! दसमस्स णायज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, एक्कारसमस्स णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पण्णते ? जम्बूस्वामी अपने गुरु श्री सुधर्मास्वामी से प्रश्न करते हैं--'भगवन् / यदि दसवें ज्ञातअध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर ने यह अर्थ कहा है, तो भगवन् ? ग्यारहवें अध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?' सुधर्मास्वामी द्वारा समाधान २-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था / तत्थ णं रायगिहे णयरे सेणिए णामं राया होत्था / तस्स णं रायगिहस्स गयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थ णं गुणसोलए णामं चेइए होत्या। सुधर्मास्वामी उत्तर देते हुए कहते हैं इस प्रकार हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था / उस राजगह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था / उस राजगृह नगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में गुणशील नामक उद्यान था। ३–तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुचि चरमाणे जाव गुणसीलए णामं चेइए तेणेव समोसढे / राया निग्गओ, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर अनुक्रम से विचरते हुए, यावत् गुणशील नामक उद्यान में समवस्त हुएपधारे / वन्दना करने के लिए राजा श्रेणिक और जनसमूह निकाला। भगवान् ने धर्म का उपदेश किया। जनसमूह वापिस लौट गया। आराधक- विराधक ४-तए णं गोयमे समणं भगवं महावीरं एवं क्यासी - 'कहं णं भंते ! जीवा आराहगा वा विराहगा वा भवंति ?' तत्पश्चात् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर से कहा-'भगवन् ! जीव किस प्रकार आराधक और किस प्रकार विराधक होते हैं ?' देशविराधक ५-गोयमा ! से जहाणामए एगंसि समुद्दकूलंसि दावद्दवा नामं रुक्खा पण्णत्ता–किण्हा जाव' १.द्वि. अ. 5. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org